SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCUSESSACREACHERE अर्थ-तथा सुभटोंके सुंदर चंदनके रससे आड़ा तिलक विशेष करा जावे और प्रधान चंपेके पुष्पोंकरके सुभटोंके द| मस्तकों पर सेहरा पूरा जावे ॥ १०२२॥ वामपयतोडरेहिं, दाहिणकरचारुवीरबलएहिं । वारणयचामरेहिं, नजति फुडं महासुहडा ॥ १०२३ ॥ | अर्थ-डावे पगमें तोडर मालविशेष तथा जीवने हाथमें मनोहर वीरवलियां वीरत्वसूचक कड़ा विशेषों करके और छत्र चामरों करके प्रगट महासुभट जाने जावे ॥ १०२३॥ गयगज्जियं कुणंता सुहडगणा तत्थ सीहनायं च । मुच्चंता नचंता, कुणंति वरवीरवरणीओ॥ १०२४।। ___ अर्थ-वहां दोनों सेनामें सुभटोंका समूह हाथीके जैसा गारव कर्ता हुआ सिंहनाद करतेहुए नांचतेहुए प्रधानबीर वर्णी नाम परस्पर शस्त्रोंके प्रहारकी याचना करे ॥१०२४ ॥ ४ जणयपुरओवि तयणं, कावि हु जणणी भणेइ वच्छ तए! तह कहवि जुज्झियत्वं, जह तुह ताओ न संकेइ॥18 अर्थ-कोईक माता पिताके आगे पुत्रसे कहे हे वत्स तेरेको उस प्रकारसे युद्ध करना कि जिससे तेरे पिताको शंका हैन होवे अर्थात् लोक ऐसा न कहे कि अमुकका पुत्र शूर नहीं है ॥ १०२५ ॥ अन्नाभणेइ वच्छाहं, वीरसुया पियाय वीरस्स । तह तुमए जइअवं, होमि जहा वीरजणणीवि ॥१०२६॥ *PASARASHISERISHA श्रीपा.व. For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy