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श्रीपालचरितम्
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॥१२६॥
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अर्थ-जो ते दूत है और ब्राह्मण है इसकारणसे छोड़ा है तै जीताहुआ चलाजा तेरे स्वामीको मारनेके वास्ते में भाषाटीकाशीघ्र आया ।। १०१७॥
| सहितम्. दुओवि दुयं गंतुं, सव्वं नियसामिणो निवेएड। तत्तो सो सिरिपालो, भूवालो चल्लिओ सबलो॥१०१८॥
अर्थ-तदनंतर दूतभी शीघ्र जाके सर्ववृतान्त अपने स्वामीसे कहे तदनंतर श्रीपालराजा सबल सैन्यसहित चला ॥ १०१८॥ चंपाए सीमाए, गंतूणावासियं समग्गंपि । सिरिपालरायसिन्नं, तडिणीतडउच्चभूमीए ॥ १०१९ ॥ | अर्थ-चंपानगरीकी सीमामें जाकर सम्पूर्ण श्रीपाल राजाका सैन्य कटक गंगानदीके तटपर निवेश किया ॥१०१९॥ सोअजियसेण रायावि, सम्मुहोआविऊण तत्थेव। आवासिओ य अभिमुह,-महीइ सिन्नेण संजुत्तो॥ I अर्थ-वह अजितसेन राजाभी सामने आके उसी गंगानदीके तटपर सन्मुखभूमिमें अपनी सेनासहित उतरा १०००
सोहिज्जइ रणभूमी, किजइ पूयाय सयलसत्थाणं। सुहडाणं च पसंसा, किज्जइ भट्टेहिं उच्चसरं ॥१०२१॥ I अर्थ-तदनंतर संग्रामकी भूमि पत्थर कांटा वगैरह दूर करके शुद्ध करी जावे और सम्पूर्ण शस्त्रोंकी पूजा करे और दू भट्ट लोक ऊंचे स्वरसे योद्धारोंकी प्रशंसा करे ॥ १०२१ ॥
॥१२६॥ किजंति भूहरीओ, सुहडाणं चारु चंदणरसेण । पूरिजंति य सिहरा, चंपयकुसुमेहिं पवरेहिं ॥१०२२॥
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