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श्रीपाल- चरितम् ॥५२॥
NAAMKARAN
धवलस्स पेरिएणं, रन्नावि हु पेसियं नियं सिन्नं । तंपि हु कुमरेण कयं, हयप्पयावं क्खणद्धेणं ॥४०॥ भाषाटीका। अर्थ-धवलसेठकी प्रेरणासे राजानेभी धवलका कार्य सिद्ध होनेके लिए अपनी सेना भेजी वह सेनाभी कुमरने टू सहितम्. आधे क्षणमें नष्ट होगयाहै प्रताप जिसका ऐसी करी ॥ ४००॥ धवलाएसेण भडा, नरवइसिन्नेण संजुया कुमरं । वेढंति तिपंतीहि, मायावीयंव रेहाहिं ॥४०१॥ __ अर्थ-धवलकी आज्ञासे सुभट राजाकी सेनाके सुभटों सहित श्रीपालकुमरको तीन पंक्तिसे वीटा अर्थात् चारो | तरफ तीन घेरादिया किसके जैसा तीनरेखा करके वीटा हुआं मायाबीज हींकारके सदृश ॥ ४०१॥ धवलो भणेइ रे रे, एयं इत्थेव सत्थछिन्नतणुं । देह बलिं जेणेसा, संतुस्सइ देवया अज ॥ ४०२॥
अर्थ-तब धवलसेठ बोला अरे २ सुभटो इस पुरुषको इसी ठिकाने शस्त्रोंसे शरीर छेदके बलिदान देओ जिसकारणसे आज यह देवता संतुष्टमान होवे ॥ ४०२॥ ताण भडाणं सरसिल्ल-भल्लखग्गाइया न लग्गति । कुमरसरीरंमि अहो, महोसहीणं पभावुत्ति ॥४०३॥ | अर्थ-उन राजा और धवल सम्बन्धि सुभटोंका वाण सिल्ल भाला खड्गादि अर्थात् बाण बी भाला तलवार वगैरह |शस्त्रोंका प्रहार कुमरके शरीरमें नहीं लगे वहां हेतु यहहै महौषधियोंका प्रभाव आश्चर्यकारी है ॥ ४०३ ॥
॥५२॥ कुमरेण पुणो तेसिं, केसिपि हु केसकन्ननासाओ । लूणियाउ नियसरेहि, करुणाइ न जीवियं हरियं ४०४||
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