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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल- चरितम् ॥५२॥ NAAMKARAN धवलस्स पेरिएणं, रन्नावि हु पेसियं नियं सिन्नं । तंपि हु कुमरेण कयं, हयप्पयावं क्खणद्धेणं ॥४०॥ भाषाटीका। अर्थ-धवलसेठकी प्रेरणासे राजानेभी धवलका कार्य सिद्ध होनेके लिए अपनी सेना भेजी वह सेनाभी कुमरने टू सहितम्. आधे क्षणमें नष्ट होगयाहै प्रताप जिसका ऐसी करी ॥ ४००॥ धवलाएसेण भडा, नरवइसिन्नेण संजुया कुमरं । वेढंति तिपंतीहि, मायावीयंव रेहाहिं ॥४०१॥ __ अर्थ-धवलकी आज्ञासे सुभट राजाकी सेनाके सुभटों सहित श्रीपालकुमरको तीन पंक्तिसे वीटा अर्थात् चारो | तरफ तीन घेरादिया किसके जैसा तीनरेखा करके वीटा हुआं मायाबीज हींकारके सदृश ॥ ४०१॥ धवलो भणेइ रे रे, एयं इत्थेव सत्थछिन्नतणुं । देह बलिं जेणेसा, संतुस्सइ देवया अज ॥ ४०२॥ अर्थ-तब धवलसेठ बोला अरे २ सुभटो इस पुरुषको इसी ठिकाने शस्त्रोंसे शरीर छेदके बलिदान देओ जिसकारणसे आज यह देवता संतुष्टमान होवे ॥ ४०२॥ ताण भडाणं सरसिल्ल-भल्लखग्गाइया न लग्गति । कुमरसरीरंमि अहो, महोसहीणं पभावुत्ति ॥४०३॥ | अर्थ-उन राजा और धवल सम्बन्धि सुभटोंका वाण सिल्ल भाला खड्गादि अर्थात् बाण बी भाला तलवार वगैरह |शस्त्रोंका प्रहार कुमरके शरीरमें नहीं लगे वहां हेतु यहहै महौषधियोंका प्रभाव आश्चर्यकारी है ॥ ४०३ ॥ ॥५२॥ कुमरेण पुणो तेसिं, केसिपि हु केसकन्ननासाओ । लूणियाउ नियसरेहि, करुणाइ न जीवियं हरियं ४०४|| **ASASA For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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