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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ- उन पुरुषोंने बत्तीस लक्षणका धारनेवाला श्रीपालकुमारको देखके धवलसेठसे कहा तब धवलसेठने उसको पकड़नेके लिए अर्थात् श्रीपालकुमरको पकड़नेके लिए और राजाकी आज्ञा लिया ।। ३९५ ॥ सो सिरिपालो चउहहयंमि, लीलाइ संनिविट्टोवि । धवलभडेहिं उभडसत्थेहिं, झत्ति आक्खित्तो ३९६ अर्थ - तब वह श्रीपाल कुमर बजार में लीलासे बैठा है तथापि उद्भट शस्त्रवाले धवलसेठके सुभटोंने शीघ्र प्रेरणा किया३९६ रेरे तुरियं चलसु रुट्ठो तुह अज्ज धवलसत्थवई । तं देवयाबलीए, दिज्झसि मा कहसि नो कहियं ॥ ३९७ ॥ अर्थ-कैसे आक्षेप कियासो कहते हैं अरे २ तैं जल्दीचल आज तेरेपर धवल सार्थवाह नाराज हुआ है तेरेको देवताके लिए बलिदान देगा नकारा करना नहीं ॥ ३९७ ॥ कुमरेणुत्तं रेरे, देह बलिं तेण धवलपसुणावि । पंचाणणेण कत्थवि, किं केणवि दिज्झए हु बली ॥ ३९८ ॥ अर्थ - तब कुमर बोला अरे २ पामरो तुह्मारास्वामी धवल पशुहैं उसकाही बलिदान देओ कारण सर्वत्र दुर्बल पशुकाही बलिदान दिया जावे है परंतु सिंहका बलिदान कहीं भी नहीं दिया जावे है ॥ ३९८ ॥ तत्तो पयडंति भडा, किंपि बलं जाव ताव कुमरकयं । सोऊण सीहनायं, गोमाउ गणुव ते नट्ठा ॥ ३९९ ॥ ॥ अर्थ - तदनंतर जितने धवलसेठके सुभट कुछ बल प्रगटकरें उतने कुमरका कियाभया सिंहनाद सुनकर वे धवलके सुभट शृगाल समूहके जैसा भाग गया ॥ ३९९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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