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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org श्रमण-सूत्र समाधि स्थानों के सेवन से जहाँ कहीं आत्मा संयम-भ्रष्ट पाठ के द्वारा किया जाता है | हुआ हो, उसका प्रतिक्रमण प्रस्तुत इकोस शबल दोप Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( १ ) हस्तकर्म = हस्त मैथुन करना । ( २ ) मैथुन = स्त्री स्पर्श यादि मैथुन करना । भोजन लेना और करना । ( ३ ) रात्रिभोजन = रात्रि में ( ४ ) श्रधाकर्म = साधु के निमित्त से बनाया गया भोजन लेना । ५ ) सागारिकपिण्ड = शय्यातर अर्थात् स्थानदाता का आहार लेना । ( ६ ) औदेशिक = साधु के या याचकों के निमित्त बनाया गया, क्रीत= खरीदा हुआ आहार, ग्राहृत = स्थान पर लाकर दिया हुआ, शमित्य = उधार लाया हुआ, आच्छिन्न = छीन कर लाया हुआ आहार लेना । ( ७ ) प्रत्याख्यान भंग बार-बार प्रत्याख्यान भंग करना । (८) गणपरिवर्तन = छह मास में गण से गणान्तर में जाना । ( ६ ) उदक लेप = एक मास में तीन बार नाभि या जंघा प्रमाण जल में प्रवेश कर नदी आदि पार करना । ( १० ) मातृ स्थान = एक मास में तीन बार माया स्थान सेवन करना । अर्थात् कृत अपराध छुपा लेना । ( ११ ) राजपिण्ड - राजपिण्ड ग्रहण करना । ( १२ ) या हिंसा = जानबूझ कर हिंसा करना । ( १३ ) श्राकुट्टया मृषा - जानबूझ कर झूठ बोलना । ( १४ ) श्राकुया दादान = जानबूझ कर चोरी करना । (१५) सचिव पृथिवी स्पर्श = जानबूझ कर सचित्त पृथिवी पर बैठना, सोना, खड़े होना । (१६) इसी प्रकार सचित्त जल से सस्निग्ध और सचित्त रज वाली पृथिवी, सचित्त शिला अथवा घुणों वाली लकड़ी आदि पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि करना शबल दोप है । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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