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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भयादि-सूत्र १८१ परिभाषा (८) वीर्य (६) धर्म (१०) समाधि (११) मार्ग (१२) समवसरण (१३) याथातथ्य (१४) ग्रन्थ (१५) आदानीय (१६) गाथा । ये सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के गाथा षोडशक = सोलह अध्ययन हैं । अध्ययनोक्त श्राचार-विचार का भलीभाँति पालन न करना, अतिचार है। सतरह असंयम (१-६) पृथिवीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, और वनस्पतिकाय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चन्द्रिय जीवों की हिंसा करना, कराना, अनुमोदन करना । (१०) अजीव असंयम = अजीव होने पर भी जिन वस्तुओं के द्वारा असयम होता है, उन बहुमूल्य वस्त्रपात्र आदि का ग्रहण करना अजीव असयम है। (११) प्रक्षा असंयम = जीव-सहित स्थान में उठना, बैठना, सोना श्रादि । (१२) उपेक्षा असंयम = गृहस्थ के पाप कर्मों का अनुमोदन करना । (१३)अपहृत्य असंयम-अविधि से परठना। इसे परिठापना असयम भी कहते हैं। (१४) प्रमार्जना असंयम = वस्त्रपात्र आदि का प्रमार्जन न करना । (१५) मनः असंयम-मन में दुर्भाव रखना । (१६) वचन असंयम = कुवचन बोलना । (१७) काय असंयम = गमनागमनादि में असावधान रहना । ये सतरह असयम समवायांग सूत्र में कहे गए हैं । असयम के अन्य भी सत्तरह प्रकार हैं-हिंसा, असत्य, अस्तेय, अब्रह्मचर्य, परिग्रह, पाँचों इन्द्रियों की उच्छङ्खल प्रवृत्ति, चार कषाय और तीन योगों की अशुभ प्रवृत्ति । प्राचार्य हरिभद्र ने आवश्यक में 'असं जमे' के स्थान में For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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