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श्रमण-सूत्र सव्यायो सब प्रकार के सव्वायो - सब प्रकार के मुसावायायो= मृषावाद से मेहुणायो= मैथुन से वेरमण = विरमण
वेरमण = विरमण .. सव्वाअो = सब प्रकार के सव्वायो= सब प्रकार के अदिन्नादाणाश्रो= अदत्ता दान से परिग्गहायो = परिग्रह से वेरमण = विरमण
वेरमण = विरमण
भावार्थ सर्व प्राणातिपात विरमण = अहिंसा, सर्व-मृषावाद विरमण = सत्य, सर्व-अदत्ता दान विरमण = अस्तेय, सर्व-मैथुन विरमण = ब्रह्म चर्य, सर्व-परिग्रह विरमण = अपरिग्रह-इन पाँचों महावतों से अर्थात् पाँचों महाव्रतों को सम्यक रूप से पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
विवेचन अहिंसा, सत्य, अस्तेय = चोरी का त्याग, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहये जब मर्यादित = सीमित रूप में ग्रहण किए जाते हैं, तब अणुव्रत कहलाते हैं । अणुव्रत का अधिकारी गृहस्थ होता है; क्योंकि गृहस्थ-अवस्था में रहने के कारण साधक, अहिंसा आदि की साधना के पथ पर पूर्णतया नहीं चल सकता, हिंसा आदि का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता । सातः वह अहिंसा आदि व्रतों की उपासना अपनी सक्षिप्त सीमा के अन्दर रहकर ही करता है। किन्तु साधु का जीवन गृहस्थ के उत्तरदायित्व से सर्वथा मुक्त होता है, अतः वह पूर्ण आत्मबल के द्वारा सयम-पथ पर अग्रसर होता है और अहिंसा आदि व्रतों की नवकोटि से सदा सर्वथा पूर्ण साधना करता है, फलतः साधु के अहिंसा आदि व्रत महाव्रत कहलाते हैं । ___ योगदर्शनकार वैदिक ऋषि पतञ्जलि ने भी महाव्रत की व्याख्या सुन्दर ढंग से की है। बोगदर्शन के दूसरे पाद का ३१ वाँ सूत्र हैजाति देशकालसमयाऽनवच्छिन्नाः सार्वभौमा महानतम् ।' सूत्र का
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