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महाव्रत-सन्न पडिकमामि पंचहिं महन्यएहि
सव्वाश्रो' पाणाइवायाश्रो वेरमणं, सव्यात्री मुसावायाओ बेरमणं सव्वाश्रो अदिन्नादाणाम्रो वेरमणं, सव्यानो मेहुणाम्रो वेरमणं, सव्याओ परिग्गहारो वेरमणं ।
शब्दार्थ पडिक्कमामि = प्रतिक्रमण करता हूँ सव्वाश्रो सब प्रकार के पंचहि = पाँचों
पाणा इवायाश्रो प्राणातिपात से महब्बएहि = महावतों से वेरमण - विरमण, निवृत्ति
१ श्राचार्य जिनदास महत्तर और हरिभद्र ने 'सव्वाओ' का उल्लेख नहीं किया है। परन्तु दशवकालिक श्रादि के महाव्रताधिकार में प्रायः सर्वत्र 'सव्वाश्रो' का उल्लेख मिलता है। स्पष्ट प्रतिपत्ति के लिए सव्वाश्रो का प्रयोग औचित्यपूर्ण है। वैसे प्राणातिपातविरमण में भी अन्तर्जल्पाकार रूप में सर्व का भाव है ही।
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