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क्रिया सूत्र
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है। परितापन से निष्पन्न होने वाली क्रिया, पारितापनिकी क्रिया कहलाती है। परितापन, अपने तथा दूसरे के शरीर पर किया जाता है, अतः स्व तथा पर के भेद से पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की होती है। प्राणातिपातिकी
प्राणों का अतिपात - विनाश, प्राणातिपात कहलाता है । प्राणातिपात से होने वाली क्रिया, प्राणातिपातिकी कहलाती है। इसके दो भेद हैं--क्रोधादि कषायवश होकर अपनी हिंसा करना, स्वप्राणातिपातिकी क्रिया है, और इसी प्रकार कषायवश दूसरे की हिंसा करना, पर-प्राणातिपातिकी है।
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