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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संज्ञा-सूत्र १३१ भय संज्ञा भय मोहनीय के उदय से आत्मा में त्रास का भाव पैदा होता है, वह भय सज्ञा है। भय आत्म-शक्ति का नाश करने वाला है। भयाकुल मनुष्य और तो क्या अपने सम्यग्दर्शन को भी सुरक्षित नहीं रख सकता । भय की बात सुनने, भयानक दृश्य देखने तथा भय के कारणों की बार-बार उद्भावना-चिन्तना करने से भयसंज्ञा उत्पन्न होती है। मैथुन संज्ञा वेदमोहोदय सवेदन यानी मैथुन की इच्छा, मैथुनसंज्ञा कहलाती है । कामवासना सभी पापों की जड़ है। काम से क्रोध, संमोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश और अन्त में मृत्यु के चक्र में मानव फँस जाता है । कामकथा के श्रवण से, सदेव मैथुन के संकल्प रखने आदि से मैथुन संज्ञा प्रबल होती है। परिग्रह संज्ञा लोभमोहनीय के उदय से मनुष्य की सग्रहवृत्ति जागृत होती है। परिग्रहसज्ञा के फेर में पड़कर मनुष्य इधर-उधर जो भी चीज़ देखता है, उसी पर मुग्ध हो जाता है, उसे स'गृहीत करने की इच्छा करता है, सदैव सतृष्गा रहता है । परिग्रह की बात सुनने, सुन्दर वस्तु देखने और बराबर संग्रह वृत्ति के चिन्तन प्रादि से परिग्रह सज्ञा बलवती होती है । For Private And Personal
SR No.020720
Book TitleShraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarchand Maharaj
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1951
Total Pages750
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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