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श्रमण-सूत्र
धवला-ग्रन्थ में, देखिए क्या लिखा है ? 'दुःखशस्यं कर्मक्षेत्र कृषन्ति फल बरकुर्वन्ति इति कषाया: ' - 'जो दुःखरूप धान्य को पैदा करने वाले कर्म रूपी खेत को कण करते हैं श्रर्थात् फलवाले करते हैं वे क्रोध मान आदि कषाय कहलाते हैं -- ।'
कोहो पीई पणासेइ, माणो विण्य-नासो; माया मित्ताणि नासेर, लोहो सन्त्र विणासो | उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्द्वया जिणे, मायमज्जव-भावेणं, लोभं
संतोसो जिणे ।
दशवै० ८ । ३८-३६
'क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का नाश करती है और लोभ सभी सद्गुणों का नाश करता है । '
'शान्ति से क्रोध को मृदुता से मान को सरलता से माया को, और सन्तोष से लोभ को जीतना चाहिए ।'
प्रत्येक साधक को दशवैकालिक-सूत्र की यह अमर वाणी, हृदयपट पर सदा अंकित रखनी चाहिए। श्राचार्य शय्यंभव के ये अमर वाक्य, अवश्य ही कषाय - विजय में हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ पथ-प्रदर्शक हैं ।
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