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पडिक्कमामि तिर्हि सल्लेहि
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: १५ :
शल्य-सूत्र
माया - सल्ले,
नियाण- सल्लेणं,
मिच्छादंसण- सल्लेगं
शब्दार्थ
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पडिक्कमामि = प्रतिक्रमण करता हूँ नियागसल्लेण = निदान के तिहिं = तीनों
सल्लेहिं = शल्यों से
माया सल्लेण = माया के शल्य से
शल्य से मिच्छा दंसण = मिथ्या दर्शन के सल्लेग = शल्य से
भावार्थ
तीन प्रकार के शल्यों से होने वाले दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ । ( किन शल्यों से ? ) मायाशल्य से, निदानशल्य से, और मिथ्यादर्शन शल्य से ।
विवेचन
अहिंसा, सत्य आदि व्रतों के लेने मात्र से कोई सच्चा व्रती नहीं बन
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