________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
गोचरचर्या सूत्र
६. ३
भेद हैं- गवेषणैपणा, ग्रहणैपणा, परिभोषणा | गवेषणा की शुद्धि के लिए १६ उद्गम दोष और १६ उत्पादन दोषों का परिहार करना चाहिए | उद्गम दोष गृहस्थ की ओर से लगते हैं और उत्पादन दोष साधु की ओर से । ग्रहणपणा के साधू तथा गृहस्थ दोनों के संयोग से उत्पन्न होने वाले शंकित श्रादि १० दोष हैं। ये ४२ दोष हैं, जिनके कारण गृहीत आहार शुद्ध माना जाता है । परिभोगणा के पाँच भेद हैं, जो माण्डले के दोषरूप में प्रसिद्ध हैं । ये दोष भोजन करते हुए लगते हैं । इन सबका वर्णन परिशिष्ट में देखिए ।
यह गोचरचर्या का पाठ गोचरी लाने और करने के बाद भी अवश्य पठनीय है।
For Private And Personal