SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra षष्टिशतक ॥१७॥ www.kobatirth.org तोय सयलजीवहिओ । भुवणगुरुगयमोहो सोहग्गनिही सुरिंदनओ ॥ ६ ॥ गामागरनगरेसु विहरंतो छाउपत्यकाळम्मि । सो उत्तरचावा (बाचा) लं जंतो गोवेहिं इइ भणिओ ॥ ७ ॥ देवाणुप्पिय मुणिवर ! एस पहो जइवि उज्जओ अत्थि । तहवि हुनहु गंतव्वं, तुम एएयंमि मग्गंमि ॥ ८ ॥ जेणित्यकणखलाभिह-मुज्जाणं वदृए अइमहंतं । तत्थस्थि महाभीमो दुट्टो दिट्टीविसो सप्पो ॥ ९ ॥ तद्दिट्ठीए जो कोइ चडइ दुपओ चउप्पओ वा वि । पक्खी वा सो तक्ख'मेव मरइ विसमविसवेगा ॥ १० ॥ ताइ मिणावं केण वि वच्चसुमग्गेण भो महासत्त ? | जं. सच्चो वि हु पुच्छर कुसलं मागणं ॥ ११ ॥ भयवं ? तेसिं वयणं सुणित्तु जाणित्तु तस्स पडिवोहं । असुतो इव तंपि हु अगेणंतो निययतणुपीडं ॥ १२ ॥ उज्जुगइए पत्तो सो कणखलकाणणे महावीरो । तत्थडिओ पडिमा जक्खहरे मंडवतलम्मि ॥ १३ ॥ सो किर सप्पो पुव्वं आसी गच्छम्मि कम्पिवि विसिद्धो, खवगो बिसेसतवलद्धि लद्धमाहप्पपसरो उ ॥ १४ ॥ सो खवणपारणम्मी वासियभत्तस्स निग्गओ सहसा । अक्कंता मंडुक्की चळणेणं तेण सा वि मया ॥ १५ ॥ खुड्डेण सहगएणं सो वृत्तो तो विराहिया तुमए । मंडुक्की तो खबगो दंसइ ताळो य पहयाओ ॥ १६ ॥ भणड़ य fa एयाओ विराहिया नणुमए अहो खुड्ड ? । तो खुड्डेणं नायं संपइ छुहिउत्ति चि ता || १७ || आवस्सस्स काले आलोहित्ति अप्पणा चैव । जावावस्सगकाले वि तेण नालोइया सा उ ॥ १८ ॥ चिंतेइ तओ खुड्डो नूणं चिस्सरियमेयमेयस्य | सारेमि तओ इन्हिति तेण तं सारियं तस्स ॥ १९ ॥ सो फडफडत होट्टो कोहुदए पकंपमाaणू । अरुणतरनयणवयणो भिउडी भीसणललाडो य ॥ २० ॥ भुज्जो भुजो कि रे मं विससि दुट्ठ सेहइ भणिरो । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकरणम् ॥ सटीकं० !॥ १७ ॥
SR No.020698
Book TitleShashti Shatak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay
PublisherSatyavijay Jain Granthmala
Publication Year1924
Total Pages282
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy