________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३१ )
भाग उपर रहेलुं पाणीनुं टीपुं थोडी वारमां ज नाश पामेछे, तेम आ जीन्दगी चंचळ छे, अस्थिर छे, अने थोडी वारमां ज नाश पामे तेवी छे. वळी आ यौवन नदीना पूरना वेग समान जतां वार न लागे तेवुं छे, अर्थात् क्षणिक छे. तो पण हे पापी जीव ! आ सर्व क्षणिक जाणतो छतां केम हजु सुधी बुझतो नथी ? ॥ ४५ ॥ अन्नत्थ सुआ अन्नत्थ, गेहिणी परिअणोवि अन्नत्थ । भूअबलिव कुटुंबं, पक्खित्तं हयकयन्तेण ॥ ४६ ॥
भूत-प्रेतादिने नाखेला बळी - बाकळा जेम छिन्नभिन्न थइ जाय छे- भिन्न भिन्न विखराइ जाय छे; तेम क्रूर यमदेवे तारा पुत्रोने अन्यगतिमां फेंकी दीधा, तारी प्राणप्रियाने कोइ बीजी गतिमां मूकी दीधी, अने तारा कुटुम्ब - कबीलाने कोइ बीजे स्थळे नाखी दीधा, आ प्रमाणे यमदेवे बधाने वेर - वीखेर करी नाख्याभिन्न भिन्न गतिमां फेंकी दीधा ! अर्थात् मन्त्र साधन
* अन्यत्र सुता अन्यत्र, गेहिनी परिजनोऽप्यन्यत्र | भूतबलिरिव कुटुम्ब, प्रक्षिप्तं हतकृतान्तेन ॥ ४६ ॥
For Private And Personal Use Only