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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४९॥ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जे एवा उत्कृष्ट पापना फलने भोगवनारा होय ते सर्वथा प्रकारे दुःखी ज होवा जोईए. जेवू दुःख नरकभूमिमां प्रसिद्ध छे तेवु | ४१ स्थाना दुःख तिर्यंच अने मनुष्योने होतुं नथी. देवना उत्कृष्ट सुखनी माफक तिर्यच अने मनुष्योने जेम उत्कृष्ट सुख नथी तेम दुःख ध्ययने ४ पण उत्कृष्ट नथी. (८५-८६) शंका-देवोर्नु पण विवादास्पद होवाथी, अर्थात् देवो छे के नहिं ए संदेह होवाथी 'विशिष्ट नारकX देवजन्मना कारणभूत प्रकृष्ट पुन्य फलवत् ' एम सिद्धान्तीए आपेलं जे दृष्टांत ते असिद्ध छे. समाधान-अर्थसहित 'देव' देवसिद्धिः पद शुद् पैद होवाथी घट नामनी जेम व्युत्पत्तिवाछं छे. ते कारणथी देवो छे एम प्रतीति करवी जोईए. वळी पूर्वपक्षी शंका करे ५१ सूत्रम् छे के-दिव्य गुणसंपन्न गणधरादि अने ऋद्धिसंपन्न चक्रवर्त्यादि मनुष्यवडे व्युत्पत्त्यर्थवाडं देवपद सार्थक थशे, पण तमने जे देवनो अर्थ विवक्षित छे ते देवपदनी सिद्धि नहिं थाय. समाधान-जो के कोईक मनुष्य विशेषमा आ देवपणुं कहेवाय छे ते पण औपचारिक छे अने सत्य अर्थनी सिद्धि छते उपचार थाय छे. जेम स्वाभाविक सिंहनो सद्भाव (अस्तित्व ) छते 'माणवक'ने विषे सिंहनो उपचार कराय छे तेम हि जाणवू, भाष्यकार कहे छे:देवत्तिसत्थयमिदं, सुद्धत्तणओ घडाभिहाणंव।अह व मती मणुओ च्चिय, देवो गुणरिद्धिसंपन्नो ।८७। तं न जओ तच्चत्थे, सिद्धे उवयारओमया सिद्धी। तच्चत्थसीह सिद्धे, माणव सीहोवयारोव्वा८८ा युग्मम् * आ वे गाथानो भावार्थ उपर आवी गयेल छे. वळी१. समास अने तद्धितरहित जे पद ते शुद्ध पद, केवल क्रियापदथो बनेलं होय ते. ॥४९॥ KXXKXXXXXXXXXXXXX XXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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