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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुःसाध्य छ तो तेना धर्मरूप वर्गणानुं एकपणुं वा अनेकपर्णु दूर रहो ( अर्थात् ते क्यांथी होय ? ) कारण के- नारको नथी, तो पछी आकाशना फूलनी माफक नारकोना साधक प्रमाणनो अभाव छे. समाधान -' प्रमाणनो अभाव ' जे तमे कल ते हेतु असिद्ध छे, कारण के तेओना साधक अनुमान प्रमाणनो सद्भाव छे, ते आ प्रमाणेः - अत्यंत पापकर्मनुं फळ विद्यमान भोगवनार विशिष्ट छे. कर्मनुं फळ होवाथी पुन्य कर्मना फळनी जेम. तिर्यंच अने मनुष्यो ज उत्कृष्ट पापफलना भोगवनारा नथी, कारण के औदारिक शरीरखाळावडे उत्कृष्ट पापफलनुं भोगवनुं विशिष्ट देवना जन्मना कारणभूत प्रकृष्ट पुन्यना फलनी जेम अशक्य छे. कां छे केः पात्रफलस्स पगिट्टस्स, भोइणो कम्मओऽवसेसव्व । संति धुवं तेऽभिमया, नेरइया अह मई होज्जा ॥८५॥ अच्चत्थदुक्खिया जे, तिरियनरा नारगत्ति तेऽभिमया । तं न जओ सुरसोक्ख-प्पगरिससरिसं न तं दुक्खं ॥ ८६ ॥ युग्मम् जेम अवशेष - जघन्य मध्यम पापना फलने भोगवनारा तिर्यंच अने मनुष्यो छे ते प्रत्यक्ष जोवाय छे तेम उत्कृष्ट पापना फलने भोगवनारा कोईक चौकस छे; माटे तेवा पापनुं फल भोगवनारा जे कोई छे ते नारको छे, एम स्वीकारर्खु जोईए. अहिं कदाच तमे एम कहेशो के (शंका) - अत्यंत दुःखी जे तिर्यंच अने मनुष्यो छे. ते ज उत्कृष्ट पापना फलने भोगवनारा होवाथी तेओने ज नारको कहेवा जोईए. अदृष्टनी कल्पना करवाथी शो फायदो ? समाधान-आ तमारी मान्यता अयोग्य छे, कारण के ९ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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