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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३८॥ १ स्थाना ध्ययने एकयोगता ४१सूत्रम् आज्ञावडे जे अर्थ ग्राह्य छे ते आज्ञाथी ज कहेवा योग्य छे. कहेबाना विधिमां दृष्टांतथी दार्टीतिक अर्थ करवो. एथी ऊलटी रीते। कथन करे तो आज्ञानी विराधना थाय. शंका-एकत्वरूप सामान्यना आश्रयवडे ज सूत्र, गमक-बोधक थशे, तो पछी आ विशेष व्याख्यावडे शुं ? समाधान-एम नहि, कारण ? सामान्यरूप एकत्वने पूर्व सूत्रोबडे कहेवायेल होथी प्रस्तुत सूत्रमा पुनरुक्तिदोषना प्रसंगथी मूत्रमां देवादि शब्द तेमज समय शब्दने ग्रहण करेल छ ते निरर्थक थशे. (माटे विशेष व्याख्या करवी योग्य छ ). आ सूत्रमा देव, असुर अने मनुष्यनुं ग्रहण करेल छे ते विशिष्ट वैक्रियलब्धिसंपन्नपणाथी देवादिकने अनेक शरीरनी रचना होते छते एक समयमा मनोयोगादिनुं शरीरनी माफक अनेकपणुं थशे, आ मान्यतानुं खंडन करवा माटे छे; परंतु तिथंच अने नारकोनो निषेध करवा माटे नथी. शंका-तियच अने नारको पण वैक्रियलब्धिवाळा छे, तेओने पण विकुबणामां शरीरना अनेकपणाथी मन वगेरेनी अनेकपणानी मान्यता संभवे छे, माटे तिर्यंच अने नारकनुं ग्रहण करवू पण योग्य छे-न्याय्य छे. समाधान-तमारं कथन योग्य छे, परंतु देवादिकनुं जे ग्रहण करेल छे ते अति विशिष्ट लब्धि(शक्ति)वाळा | होवाथी शरीरोनी अत्यंत अनेकता छ, आ कारणथी तेओन ग्रहण करेल छे. बळी प्रधान मुख्य )नो स्वीकार करवाथी इतर-सामान्यनुं ग्रहण स्वतः थाय छे, ए न्यायथी दोष नथी. नारकादिकोथी देवादिकोनुं प्रधानपणुं प्रसिद्ध ज छे. आ मन वगेरेनो क्रम, यथायोग प्रधानपणाथी करेल छे. प्रधानपणुं ते बहु, अल्प अने अल्पतर कर्मना क्षयोपशमथी उत्पन्न थयेल लाभवडे । १.धणा कर्मोना क्षयापशमथी मनोयोगना, तेथी अल्पकर्मना क्षयोपशमथी वचनयोगनी अने तेथी अल्पतर ( अति ओछो) कमना क्षयोपशमथी काययोगनी प्राप्ति थाय छे. RAKXxxx XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX KAKKKK ॥३८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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