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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX देखाय छ अर्थात् बे उपयोग थाय. अहिं समाधान करे छ-जो के आ शीत अने उष्णना बे उपयोग पोताना स्वरूपवडे भिन्न कालमां होवा छतां पण समय अने मननी अति सूक्ष्मतावडे एक समयनी जेम प्रतीत थाय छे, परन्तु ते एक समयमां ज शीत अने उष्ण बनेनी साथे प्रतीति थती नथी. भाष्यकार कहे छेसमयातिसुहमयाओ, मन्नसि जुगवं च भिन्नकालंपि। उप्पलदलसयवेहं, वजह व तमलायचक्रति॥७७॥ ___ समयनु अति सूक्ष्मपणुं होवाथी भिन्न भिन्न काल छतां पण एक समयमा तुं सेंकडो कमलपत्रना वेधनी माफक अथवा अलांतचक्रनी जम (शीत अने उष्ण स्पर्शनो अनुभव ) बन्ने माने छे. वळी एक विषयमा जोडायेलं मन जो बीजा विषयनो | * पण अनुभव करे तो बीजा विषयमां गयेल चित्तवाळो पुरुष आगळ रहेल हाथीने पण केम जाणी शकतो नथी ? भाष्यकार कहे छे के:अन्नविणिउत्तमन्नं, विणिओगंलहइ जइमणो तेणं। हत्थिपिठियं पुरओ, किमन्नचित्तो न लक्खेइ ? ७८ आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे. अहिं घणुं कहेवानुं छे पण ते स्थानांतरथी जाणवू, अथवा सत्य, असत्य, सत्यासत्य (मिश्र), असत्यामृषा(व्यवहार)रूप चार मनोयोगमा कोइ पण एक ज मनोयोग एक वखते होय छ, अन्योन्य विरोध होवाथी १. अलातचक्र एटले उंबाडोयु-बळ लाकडुं. ते भिन्न भिन्न समये जुदी जुदा दिशाओमा फरे छे तथापि समय अने दिशानो भेद जणातो नथो तेमन सेंकडो कमलपत्रना वेधमां पण भिन्न भिन्न काळे वेध थाय छे.. XXXKXXXKXE XXXKAKKAKKAKKAKAEXKAKKAKKKAKKAR XXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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