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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद १. स्थाना* ध्ययने ।एकयोगता XXXXXKKKAKKKXXXKXKKKKKKKAKKKKK 'मन्न'त्ति प्राकृतशैलीथी मननं मतिः-मनन करवू ते मति-कंईक अर्थनुं ज्ञान थये छते पण मूक्ष्म धर्म वस्तुस्वभाव)नी आलोचनारूप बुद्धि छे. केटलाएक मतिनो अर्थ आलोचन कहे छे. अथवा माननार, मानवा योग्य-स्वीकार आ अर्थ जाणवो. बन्ने सूत्रमा पण सामान्यथी एकपणुं छे. (सू०३१)'एगा विन्नू'त्ति-विद्वान् अथवा विज्ञ-विशेष जाणनार. समान बोधपणुं होवाथी एक छे. 'उत्पाद' शब्दनी उपा शब्दनी माफक 'विन्नू' शब्द प्राकृतपणाथी स्वीलिंगे छे. अथवा भाव प्रत्ययनो लोप थवाथी विद्वत्ता-विज्ञता एक छे. (मू०३२) 'वयण' त्ति पहेला वेदना, सामान्य कमना अनुभवस्वरूप कहेली छे. अहिं तो पीडा स्वरूप ज जाणवी. ते सामान्यथी एक ज छे. (मू०३३) आ पीडाना ज कारण विशेषना निरूपण माटे कहे छ-'छयणे'त्ति छेदनं-शरीग्नु अथवा बीजानु ( काष्ठादिनु ) खड्ग, कुहाडा वगेरेथी छेदन कर (स०३४) 'भेयणे' त्ति भेद-भाला, बरछी वगेरेथी भेदन करवू ( भोंक) अथवा छेदq ते कमनो स्थितिघात अने भेदन तो कर्मना रसनो घात करे ते. एकपणुं तो विशेष स्वरूपनी विवक्षा न करवाथी छे. (स०३५) वेदनाथी मरण थाय छे आ कारणथी ते मरण विशेष कहे छ-'एगे मरणं' इत्यादि मृतिः मरण, अन्ने भवमन्तिमम्-छल्लु एवं शरीर ते अंतिम शरीर, तेमां थनारी-छेल्ला शरीरमा थनारी (वेदना). अहिं उत्तरपदमा वृद्धि थयेल छे. अथवा छेल्लुं शरीर छ जेओने ते अतिमशारीरिका अहिं दधिपणुं प्राकृत शैलीथी थथल छे. अंतिम शरीरमा थनारी बेदनावाळा अथवा छल्ला शरीवाळा १ · अंतिमशारोरिकी ' ए शब्दमां शारीरिकी उत्तरपद छे तेमां 'श'नो 'शा' वृद्धि ययेल छे. २ अंतिमशारीरिका अहि 'क' नो 'का' प्राकृत शैलोथी दीर्घ थयेल छे. ॥३५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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