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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ४४४४४४४६ ने मामान्यथी एक छ. (मू०२४) 'जह' त्ति-मरण पछी मनुष्यत्वादिमांथी नारकत्वादिने विषे जीवनुं जर्बु ने गति. ते एक जीवने एक वखत एक ज होय छे. ऋजुगति के वक्रगति एक होय, अथवा नरकगति वगेरेमांथी एक गति होय. अथवा पुद्गलनी (गति ) एक छ, अथवा स्थितिना मात्र लक्षण्यपणाधी एटले गमनस्वरूपवडे सर्व जीव अने पुद्गलोनी गति एक छे. (मू०२५) 'आगई' त्ति आगमनमागतिः-आवq ते आगति. नरकवादिमांथी पार्छ आवद्यु, तेनु एकपणु गतिनी माफक जाणवू. (सू०२६) 'चयपत्ति च्यवनं-च्यवन-वैमानिक अने ज्योतिष्कोनु मरण, ते एक जीवनी अपेक्षाए एक छे. नाना जीवोनी अपेक्षाए पूर्वनी माफक जाणवू. (मु०२७) 'उववाएत्ति उपपतनमुपपातः-उत्पन्न थर्बु ते उपपात, ते देव अने नारकोनुं जन्म, ते च्यवननी माफक एक छे (सू०२८) 'ततितर्कणं तर्क:-विमर्श (विशेषविचार), अवाय (निश्चय)थी पहेला अने इहा(विचारणा)थी पछी. प्रायः माधुं खंजवाळq (चेष्टाविशेष) वगेरे पुरुपना धर्मो अहिं घटमानं थाय छे, एवी रीते संप्रत्ययरूप-ज्ञान थq. अहिं एकपणुं पूर्वनी माफक छे. (मू०२९) 'मन्नत्ति संज्ञान-संज्ञा. संज्ञा अर्थात् व्यंजनावग्रहना उत्तरकालमा थनार मतिविशेष छे. अथवा आहार, भय इत्यादि उपाधिवाळी चेतना ते संज्ञा, अथवा नाम ते संज्ञा. (सू०३०) १. बाबूवाळी प्रतिमा “चैकतयैकस्वरूपा" पाठ छे ज्यारे आगमोदय समितिवाळो प्रतमां “पैकरूपा" एवो पाठ टोकामां छे. २. 'अयं स्थाणुर्वा पुरुषो वा' आ हुँठो छे के पुरुष छ ? आ इहा कहेवाय छे, त्यारबाद हस्तादिना चलनथी आ थाणु नथो ए विमश. ३ संज्ञा, मतिज्ञाननो पर्यायवाचक छे. % % XXXXXXXXXXXXXXXXXXX % % % For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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