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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥२॥
२. योग-संबंध.
EMAD१ स्थानातथा योग एटले संबंध, ते जो उपाय उपयरूप लहीए तो अनुयोग ए उपाय अने अर्थावंगमादि उपेय, तो ते संबंध प्रयो
ध्ययने जनना कथनथी ज कहेवायो छे, तेथी' अवसर लक्षण' अनुयोगनो संबंध कहेवा योग्य छ अर्थात् आ अनुयोगना दानमा योगद्वार. (देवामां ) कोण संबंध एटले अवसर छे ? अथवा अनुयोगना देवामां कोण लायक छ ? तेमां अनुयोगना दानमा भव्य, मोक्षमार्गमां अभिलापावाळो, गुरुनां उपदेशमा निश्चल-स्थिर अने आठ वर्ष जेने दीक्षा लीधे थया होय एवा जे प्राणी (साधु ) होय तेने ज सूत्रथी (मूलपाठथी ) पण आपवा योग्य छे-ए आ अवसर छे अने योग्य पण ते ज छे. यत उक्तम्| तिवरसपरियागस्स उ,आयारपकप्पनाममज्झयणं। चउवरिसस्स य सम्म, सूयगडं नाम अंगति॥१॥
दसकप्पव्ववहारा, संवच्छरपणगदिक्खियस्सेव । ठाणंसमवाओऽवि य, अंगे ते अट्ठ वासस्स ॥२॥ ____ अर्थ-त्रण वर्षना पर्यायवालाने तो आचार प्रकल्प नामर्नु अध्ययन अर्थात् निशीथसूत्र, अने चार वर्षना पर्यायवालाने सारी रीते सूयगडांग नामे सूत्र, (२) पांच वर्षनी दीक्षावालाने ज दशाश्रुतस्कंध, बृहद्कल्प अने व्यवहारसूत्र, तेमज आठ वर्षनी दीक्षावालाने ठाणांग तथा समवायांग सूत्रनी वाचना आपया योग्य छे. (३) अन्यथा बीजी रीते आ सूत्रनो अनुयोग देवामां आज्ञाभंग आदि दोष थवा पामे छे.
१. अर्थनो बोध.
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