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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३१८ ।। www.kobatirth.org 'अज्झोचवण' ति० अभ्युपपादन- कोईक इंद्रियना विषयने विषे आसक्ति, आ अर्थ छे. तेमां विषयजन्य अनर्थने जाणनारनी विषय परत्वे जे आसक्ति ते जाणू अने अजाणनी जे आसक्ति ते अजाणू तेमज संशयवाळानी जे आसक्ति ते विचिकित्सा. 'परियावज्जण' ति० पर्यापदन - समस्तरूपे सेवयुं आ सेवा पण 'जाणू' विगेरे त्रण प्रकारे छे. (२१८) 'जाणु' ति० ज्ञः, ते ज्ञानथी थाय एम कछु, अने ज्ञान ते अतींद्रियना अर्थेमां प्रायः शास्त्रथी थाय छे माटे शास्त्रना भेदवडे तेना भेदने कहे छे- 'तिविहे अंते ' इत्यादि ० ' अमनमधिगमनमन्तः ' -निर्णय, तेमां लोक-लौकिकशास्त्र, लोकोए बनावेल होवाथी अने ओ द्वारा भगवा योग्य होवाथी - अर्थशास्त्र विगेरे, तेथी, अंत-निर्णय अथवा तेनुं परम रहस्य अथवा पर्यंत ( छेवट) ते लोकांत, एवी रीते वेदना अने समय ( जिन सिद्धांतो )नो अंत पण जाणवो, विशेष ए के ऋगवेद विगेरे चार वेदो अने समयो-जैन विगेरेना सिद्धांतो. (सू० २१९) हमणां समयनो अंत कयो, अने समय ते जिन, केवली तथा अर्हत् शब्दवाच्य | पुरुषोवडे कल यथार्थ होय छे, माटे जिनादि शब्द ( पुरुषो )ना भेदोने कहेवा माटे त्रण सूत्रो कहे छे' तओ जिणे'त्यादि० सुगम छे. विशेष ए के राग, द्वेष अने मोहने जेओ जीते छे तेओ जिनो-सर्वज्ञो छे. कछु छे के - "रागद्वेष तथा मोहने जिओए जीत्या छे ते जिन कहेवाय छे. वळी स्त्री, शस्त्र अने अक्ष-जपमाला रहित होवाथी अईत् ज अनुमान कराय छे. " तथा निश्चयी प्रत्यक्ष ज्ञानपणाए जिनोनी माफक जेओ वर्ते छे तेओ पण जिनो छे. तेमां अवधिज्ञान छे प्रधान जेने * रागद्वेषादि जेओने उपशांत थयेल होय एवा मुनिओ उपचारथी जिन कहेवाय छे. सिद्धांतमां पण " जियकोहे " इत्यादि विशेषण आपेल छे, परंतु बीजा संभवे नहि केम के उपचार पण योग्य स्थानमां कराय छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XX ****** ३ स्थान काध्ययने उद्देशः अवधिि नादिस्व रूपस २१८ २२० सूत्राणि ॥ ३१८
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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