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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org के नहिं एवा संशय सहित तेनाथी निवर्ते ते, एवी रीते अध्युपपादनआसक्ति त्रण प्रकारे छे, ते आ प्रमाणे- विषयने अनर्थरूप जाणीने स्वीकारे छे, विषयने अनर्थरूप न जाणीने स्वीकारे छे अने अनर्थरूप छे के नहि एम संशयथी स्वीकारे छे. एवीज रीते पर्यापदन - भोगवनुं, जाणतो छतो, अजाणतो छतो अने संशयथी विषयने भोगवे छे. (सू० २१८) त्रण प्रकारे अंत (रहस्य) कहेल छे, ते आ प्रमाणे- लौकिक शास्त्रनुं रहस्य, वेद (ऋग्वेदादि) नुं रहस्य अने समय - जिनेश्वर आदिना सिद्धांतोनुं रहस्य. (सू० २१९) ऋण प्रकारे जिन ( रागादिने जीतनार ) कहेल छे, ते आ प्रमाणे- अवधिप्रधान जिन ते अवधिज्ञानजिन, एवी ज रीते मनःपर्याय जिन अने केवलज्ञानजिन छे. १, त्रण प्रकारे केवली कहेल छे, ते आ प्रमाणे- जे केवलीनी जेम विशिष्ट प्रत्यक्ष ज्ञानवाळा ते अवधिज्ञानकेवली, एवी रीते मनःपर्यायकेवली अने केवलज्ञानकेवली २, ऋण प्रकारे अर्हत (देवादिकने पूज्य ) कहेल छे, ते आ प्रमाणे अवधिज्ञानप्रधान अर्हत, एवी रीते ते मनःपर्यवज्ञान अर्हत अने केवलज्ञान अर्हत ३ ( सू० २२० ) 'टीकार्थ:-'तिविहे 'त्यादि० व्यावर्तन-कोई पण प्रकारे हिंसादिनी मर्यादाथी निवृत्ति, आ अर्थ छे. ते निवृत्ति हिंसादिना हेतु, स्वरूप अने फळने ते जाणनारनी ज्ञानपूर्वक जे विरति ते ज्ञातानी साथ अभेद होवाथी 'जाणू' एम कहेली छे. अज्ञअजनी ज्ञान विना जे विरति ते अजाणू अने विचिकित्सा संशयथी जे विरति ते. निमित्त अने नैमित्तिकना अभेदथी 'विनिगिच्छा' कहेली छे. व्यावृत्ति आ शब्दवडे हमणां चारित्र कझुं. तेना विपक्षभूत अशुभ अध्यवसाय अने अशुभ अनुष्ठान, ए बन्नेन भेदोने हवे अति देशथी कहे छे-'एव' मित्यादि सूत्रमां ' एव' मिति० व्यावृत्ति ( विरति ) नी जैम ऋण प्रकारे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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