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जाति, कुल विगरनो दोष काढीने अवर्णवाद बोले, सेवामां वर्ततो नथी, अनुचित करे ले, छिद्र जुए है, बीजानी समक्ष गुरुना दोषने कहे छे तथा गुरुथी प्रतिकूल रहे छे.
अहवावि वए एवं, उवएसं परस्स देंति एवं तु । दसविहवेयावच्चे, कायव्व सयं न कुवंति ॥ २१२।। ___अथवा एवी रीते पण बोले छे-बीजाने उपदेश आ प्रमाणे आपे छ के-दश प्रकार- बयावृत्य करवू परंतु पोते करता नथी. गति-मनुष्यपणा संबंधी विगेरे, तेमां आ लोकनो-प्रत्यक्ष मनुष्यत्व लक्षणपर्यायनो प्रत्यनीक एटले इंद्रियना अर्थने प्रतिकूलता करनार होवाथी पंचाग्नि तपस्वीनी माफक आलोकप्रत्यनीक, परलोक-जन्मांतर प्रत्ये प्रत्यनीक एटले इंद्रियना अर्थमां तत्पर [विषयसुखलंपट ], बंने प्रकारना लोकनो प्रत्यनाक-चोरी विगेरेवडे इंद्रियना अर्थ (भोग) साधवामां तत्पर. अथवा बीजी रीते जणावे छे के-आ लोकमां उपकारी पुरुषोना भोगसाधनादिने उपद्रव करनार ते आलोकप्रत्यनीक, एवी रीते ज्ञानादिने उपद्रव करनार ते परलोकप्रत्यनीक अने बन्नेने उपद्रव करनार ते उभयलोकप्रत्यनीक. अथवा आ लोक ते मनुष्य लोक, परलोक नारकादि अने उभयलोक एटले बन्ने, प्रत्यनीकता तो तेनी विपरीत प्ररूपणामां छे. कुल-चांद्रादिक, ते कुलोनो समूह ते गणकोटिकादि, ते गणोना समूह ते संघ. प्रत्य नीकपणुं तो एओना अवर्णवाद कहेवावडे जाणवू. कुलादिनुं लक्षण आ प्रमाणेएत्थ कुलं विन्नेयं, एगायरियस्स संतई जाउ। तिण्ह कुलाण मिहो, पुण साक्खाणं गणो होइ॥२१३॥
एक आचार्यनी संतति (शिष्यादि परंपरा ) ते कुल, जेम वज्रसेन आचार्यनी संतति ते चंद्रकुल. तथा अहिं परस्पर
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