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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१६२॥
| विस्तारवाळा छे. वळी ते सर्व द्वीप तथा समुद्रोनुं प्रमाण मलीने एक राज थाय छे. अध्धापल्यापम अने सागरोपममां पण सूक्ष्म अने बादर एवा बे भेद छे. विशेष ए के-सो सो वर्षे पूर्वोक्त वालाग्रने काढवाथी बादरअध्धा अने काध्ययने ते वालाग्रना असंख्यात खंडने सो सो वर्षे काढवाथी सूक्ष्मअध्धापल्योपम अने सागरोपम पूर्वोक्त रीते थाय छे. आ|| उद्देशः४ सूक्ष्म अध्धापल्योपम अने सागरोपमवडे नारकादिनी स्थिति-आयुष्यनुं मान कराय छे. क्षेत्रपल्योपम अने सागरोपमना
अध्धास्वरुपण एवी रीते सूक्ष्म अने बादर बे भेद छे. विशेष ए के-पूर्वोक्त रीते वालाग्रने भरीने तेने स्पर्शीने रहेला आकाशप्रदेशोने
पम् प्रतिसमये अपहार करतां जेटला काळे ते पल्य खाली थाय तेटला कालने व्यवहारिक (बादर) क्षेत्रपल्योपम कहेवाय छे अने ते वालाग्रना असंख्यात खंडवडे ते पल्यने भरीने तेने स्पीने रहेला अने अस्पृष्ट ( नहि फरसेला ) आकाशप्रदेशोने प्रति
X९९ सूत्रम् समये अपहार करतां जेटला काळे ते पल्य खाली थाय तेटला कालने सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम कहेवाय छे. तेम सागरोपम पण | जाणी लेवू. आ क्षेत्रपल्यापमादिनी प्ररूपणा मात्र विषयमा ज छे. आक्षेत्रपल्योपम अने सागरोपमनो दृष्टिवादमां स्पृष्ट अने अस्पृष्ट प्रदेशना विभागवडे द्रव्यना मानमा प्रयोजन छे एम संभळाय छे. त्रण प्रकारनो बादर भेद प्ररूपणा मात्र छे. ते कारणथी आ प्रकरणमां उध्धार अने क्षेत्र औपमिकनुं निरुपयोगीपणुं होबाथी अने अध्धोपमिकर्नु ज उपयोगीपणु होवाथी अध्धा एवं विशेषण सूत्रमा कहेलुं छे. आ हेतुथी ज अध्धापल्योपमना स्वरूपने कहेवानी इच्छावडे सूत्रकार कहे छ 'से किंत'मित्यादि० हवे ते पल्योपम शुं छे ? जे अध्धानी उपमावडे कहेल छे. आ प्रश्नमां अनुवादवडे आ उत्तर कहे छे 'पलिओवमे त्ति० पल्योपम आवी रीते थाय छे. आ शेष वाक्य छ 'जं जोयणा' (पेली गाथा) १६२॥
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