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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra XXXXX www.kobatirth.org कम होय ते पुष्करिणी (१०), सरोवर एटले जलनुं स्थान अने सरपंक्ति ते सरोवरती पंक्ति-बे चार श्रेणी ( ११ ), अगड - कूप ( कूओ), तळाव, द्रह तथा नदी प्रसिद्ध छे (१२-१३), पृथ्वी - रत्नप्रभा वगेरे अने उदधि ते रत्नप्रभादि पृथ्वीनी नीचे रहे घनोदधि (१४), वातस्कंध - घनवायु, तनवायु अथवा बीजा पण वायु अने अवकाशांतर - वातस्कंधोनी नीचे रहेल आकाश-ए उपरोक्त वस्तुओनुं जीवपणुं तो सूक्ष्म पृथ्वीकायिक वगेरे जीवोवडे व्याप्त होवाथी छे. (१५), वलय - पृथ्वीना वेष्टन (बंध ) रूप घनोदधि, घनवात, तनुवात लक्षण, अने विग्रह - लोकनाडीना वक्र स्थान, एओनुं जविषणुं तो पूर्वनी माफक समज. (१६), द्वीप अने समुद्र प्रतीत छे (१७), वेला-समुद्रना पाणीनी वृद्धि अने वेदिका प्रतीत छे (१८), द्वारो-विजय वगेरे दरवाजाओ अने तोरणो–ते दरवाजाओमां जे रहेला होय ते (१९), नैरयिको - किलष्ट (दुःखित) जीवावशेषो, तेओनुं अजीवपणुं कर्म पुद्गलादिनी अपेक्षाए जा अने ते नैरयिकोनी उत्पत्तिनी भूमिओ ते नरकावासो, तेनुं जीवपणुं पृथ्वीकायिकादिनी अपेक्षाए जाणवुं. एवी रीते चोवीश दंडको कहेवा (२०-४३), आ ज कारणथी (सूत्रकार) कहे छे- 'याव' दित्यादि० कल्प, देवलोक अने ते देवलोकना अंश ते कल्पविमानावास (४४), वर्ष - भरतादिक्षेत्र अने वर्षधर पर्वत ते हिमवान वगेरे (४५), कूट - हिमवतकूट वगेरे अने कूटागार - ते कूटोमा ज रहेल देवना भवनो (४६), विजय चक्रवर्त्तीने जीतवा योग्य कच्छादि क्षेत्रना खंडस्वरूप अने राजधानी क्षेमादि नगरी (ज्यां राजा रहे ते ) 'जीवे' त्यादि० अहिंया कहेलं सर्वत्र जोडवु (४७), [२]. जे पुद्गलधर्मो छे ते पण तेमज छे. ए हेतुथी कहे छे- 'छाये' त्यादि ० आ पांच सूत्रो कहेल अर्थवाळा छे, हवे विशेष कहे छे-छाया वृक्षादिनी जाणवी, आतप - सूर्यनो जाणवो. (१), 'दोसिणाति व' ति० ज्योत्स्ना एटले प्रकाश अने अंधकार एटले तम (२), अवमान - क्षेत्र वगेरेनुं २७ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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