________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
XXX
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद श्रा१४८॥
KKKOKXXXXXXXXXXXXXXXXXX
भरतक्षेत्रना विष्कंभ( पहोळाई )धी चारगुणो हैमवतक्षेत्रनो विष्कंभ होय छ, हैमवतक्षेत्रना विष्कंभथी चारगुणो २ स्थानहरिवर्ष क्षेत्रनो विष्कंभ छ अने हरिवर्ष क्षेत्रना विष्कभने चारगुणो करवाथी महाविदेह क्षेत्रना विष्कम थाय छे. एवी रीते काध्ययने ऐरवादि क्षेत्रनुं जाणी लेवु.
उद्देशः ३ सत्तत्तरि सयाई, चोइस अहियाइं सत्तरस लक्खा।
अपरवर्णनम् होइ कुरूविक्खंभो, अट्ट य भागा अपरिसेसा ॥ १०६ ॥ [१७०७७१४ २१३] सत्तर लाख, सात हजार, सातसो ने चौद योजन उपर आठ भाग बसो बारीआ प्रत्येक कुरुक्षेत्रनो विष्कंभ छ. 1९३ सूत्राणि
चत्तारि लक्ख छत्तीस, सहस्सा नव सया य सोलहिया। [एषा कुरुजीवा] [ ४३६९१६ ]
दोण्ह गिरीणायामो, संखित्तो तं धणू कुरूणं ॥ १०७॥ चार लाख, छत्रीस हजार, नवसो ने सोल योजन प्रत्येक कुरुक्षेत्र( देवकुरु )नी जीवा छे. ते जीवामां वे गजदंत आकृतिवाळा पर्वतोनी लंबाई भेळववाथी जेटलुं प्रमाण थाय तेटलुं कुरुक्षेत्रना धनुपृष्ठy प्रमाण जाणवू.
सोमणसमालवंता, दीहा वीसं भवे सयसहस्सा। १ भरतना बाहेरना विप्कभथी चोगुणो हैमवतनो बहारनो विकम अने अंतरना विष्कंभथी ची गुणो अंतरनो विप्कंभ होय छे. २ भरत जेटलो ऐरवतनो, हेमवत जेटलो हेरण्यवतनो अने हरिवर्ष जेटलो रम्यकवर्षनो विप्कंभ जाणी लेवो.
१४८॥
KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
ख, छत्रीस हजार बाधी जेटलं प्रमाण थाय तसयसहस्सा।
श्री चे गुणो अंतरनो बिष्य
For Private and Personal Use Only