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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KAMAR KA XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX उपोद्घातनियुक्तिमा अंतर्गत त्रीजुं निर्गमद्वार बताव्युं छे. (द्रव्यथी) मिथ्यात्वरूप अंधकार आदि दोषोथी निर्गत (नीकळेलो)। जे पुरुष, तेथी नीकळेलं आ अध्ययन, क्षेत्रथी अपापा ( मध्यम) नगरीमा, कालथी वैशाख शुक्ल इग्यारंसनी प्रथम पोरसीने विषे अने भावथी क्षायिकभावमा वर्तमान होवाथी-आ प्रमाणे आनो गुरुपर्वक्रम( गुरुपरंपरा )रूप संबंध देखाडेलो छे. बली तथाविध भगवाने जे कहेलुं छे ते सप्रयोजन ज छे. एवीरीते सामान्यथी आ अध्ययननी सप्रयोजनता दर्शावी. परम ऐश्वर्यवान जिनेश्वरो पुरुषार्थने बिनउपयोगी कहेता नथी, कारण के तेम कहेबाथी भगवानपणानी हानि थाय. आ ज कारणथी आनो उपाय-उपेय( कारणकार्य )भावरूप संबंध पण देखाडेल छे. भगवाने जे कहेलुं ते आ सूत्ररूपे गुंथायेलु ए उपाय अने पुरुपार्थ ए उपेय जाणवो. आकारणथी ज श्रोताओ श्रवणमा प्रवर्तेल छे. कहेलुं छे के-सांभलनार, सिद्ध छे संबंध जेना एवा निर्णीत अर्थवाला शब्दने सांभळवा माटे प्रवर्ते छे. ते कारणथी शास्त्रनी शरुआतमा प्रयोजन सहित संबंध कहेबो जोइए. 'एवमिति आ शब्दथी भगवानना वचनथी आत्म ( अमारुं ) वचन जुदुं नथी, आ कारणथी ज स्ववचन- प्रमाणपणुं बतावेलुं छे. सर्वज्ञवचनना अनुवादरूप मात्र अमारुं वचन छे, अथवा एवमिति-विषयपणाए करी एकत्वादि प्रकार कहेल छे. अविषयपणानी शंकावडे कागडाना दांतनी परीक्षामां जेम कोई प्रवृत्त थतो नथी तेम श्रोताओनी अप्रवृत्ति न थाय, ए हेतुथी 'आख्यातमितिआ शब्दथी कहेलुं वचन अपौरुषेय वचननो असंभव होवाथी अपौरुषेय वचनरूप नथी. कहुं छे के १. बैशाख शुक्ल दशमीना दिवसे महावीर प्रभुने केवलज्ञान उत्पन्न घयु अने वैशाख मुद ११ ना तोर्थस्थापना करो तेथी अगीयारस जणावी छे. KAKKKKKKKKAK,NEKKKKK 4,436KKAKKKKKAKKA For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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