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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १३१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पातद्रह छे. 'हरिकंतप्पवायद्दहे चेव' ति० पूर्व कहेल स्वरूपवाळी हरिकांता महानदी जे कुंडमां पडे छे, वळी जे कुंडनुं प्रमाण हरितकुंड समान छे, अने हरिद्वीप समान भवन सहित हरिकांतादेवीना द्वीपवडे भूषित मध्यभाग के जेनो ते हरिकांताप्रपातद्रह छे. 'जंबू' इत्यादि० 'सीयप्पवाय दहे चेव' ति० नीलवान पर्वतथी शीतानदी नोकळीने जे कुंडमां पडे छे, बळी जे कुंड लांबो अने पहोळो चारसो एंसी योजन छे अने पंदरसो अढार योजन विशेष न्यून परिधिवाको छे, तथा जेनी मध्यमां चौसठ योजन लांबो अने पहोलो बसो अने बे योजननी परिधिवाळी, जलना उपर वे कोश ऊंचो शीता द्वीप छे, तथा शीता देवीना भवनथी सुशोभित उपरनो भाग छे जेनो ते शीताप्रपातद्रह छे. 'सीतोदप्पवायद्दहे चेव' ति० निपधपर्वतथी शीतोदा नदी नीकळीने ज्यां (कुंडमां) पडे छे ते शीतोदाप्रपातद्रह छे. ते शीताप्रपातद्रह समान छे अने शीतादेवीना द्वीप अने भवन समान शीतोदादेवीनो द्वीप अने भवन छे. (३), 'जंबू' इत्यादि० नरकांता अने नारीकांताप्रपातद्रह (ए बन्ने) तो हरिकांता अने हरित्प्रपातद्रह ( समान छे. अने पोताना नाम समान द्वीप अने देवीओ छे. 'एव' मित्यादि० सुवर्णकूला अने रूप्यकूला प्रपातद्रह (ए बन्ने ) ने रोहितांशा अने रोहितप्रपातद्रह सरखा जाणवा. विशेष स्वयं समजवा योग्य छे. 'जंबू' इत्यादि० रक्ता अने रक्तावतीप्रपातद्रह (ए बन्ने ) ने गंगा अने सिंधुप्रपातद्रह समान कहेवा, परंतु रक्ता पूर्वसमुद्रमां मळनारी, अने रक्तवती पश्चिम समुद्रमां मळनारी छे. 'जंबु' इत्यादि० 'जंबुद्दीवे २ मंदरस्स दाहिणेणं भरहे वासे दो महानदीओ' इत्यादि० 'एव' मिति० अनंतरक्रमवडे 'जह' ति० जेम पूर्वे क्षेत्र क्षेत्रमां बे वे प्रपातद्रह कह्या तेवी रीते नदीओ पण कहेवी. ते आ प्रमाणेगंगा १ सिंधू २ तह रोहियंस ३, रोहीणदी य ४ हरिकंता ५ । For Private and Personal Use Only ***************** २ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ हूदनद्यादिस्वरूपम् ८८ सूत्रम् ।। १३१ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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