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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org XXXXXXXXXX3636 पोते तो पडेलो ज छ ), आधी उत्कृष्ट बीजु क्यु पाप छे ? अर्थात् कोई नथी. (२७). 'मये ति आ शब्दवडे उपक्रमद्वारवडे कहेवायेल जे भावप्रमाणद्वारगत आत्मा, अनंतर अने परंपर भेदथी भिन्न आगमने विषे आ कहेवातो ग्रंथ, अर्थथी अनंतरागम अने सूत्रथी तो आत्मागम छे. 'आयुष्मन्निति आ शब्दवडे तो शिष्यना चित्तने आह्लाद करनार कोमल वचनवडे आचार्य उपदेश करवो जोइए तेम जणावेल हे. उक्तं चधम्ममइएहिं अइ-सुंदरेहिं कारणगुणोवणीएहिं । पल्हायंतो य मणं, सीसं चोएइ आयरिओ॥२८॥ __ धर्ममय वचनोथी अति सुंदर भाषावडे, कारण एटले पोताने भणवानुं प्रयोजन अने गुण-शीखनार ने ज्ञानपात्रता | विगेरे बताबवावडे शिष्यना चित्तने आनंद कराबता आचार्य शिष्यने प्रेरणा करे छे. (२८). प्राणीओने आयुष्य अतिशय बहालं होवाथी आयुष्मन् शब्द अत्यंत हर्षजनक छे. कयुं पण छे के-'सब्वे पाणा पियाउया अप्पियवहा सुहासाया दुक्खपडिकूला सब्वे जीविउकामा सञ्बेसिं जीवियं पियं'-सर्व प्राणीओने आयुष्य प्रिय होय छे अने वध अप्रिय छ, सुख अनुकूल अने दुःख प्रतिकूल होय छे, बधा जीववानी इच्छावाला होय छे अने सर्वने जीवित प्रिय होय छे. तथा मनुष्यो, जीवन माटे पुत्र, खी अने धनसंपत्तिने तृण (घास ) तुल्य पण नथी मानता, कारण के तेओने आयुष्य अति वहालुं होय छे. अथवा आयुष्मन्-आ शब्दबडे ग्रहण, धरणादि गुणवाळा शिष्यने शाखनो अर्थ देवा योग्य छे ए अर्थ जणाववा माटे, सर्व गुणोना आधारभृत, समस्त गुणना उपलक्षणरूप लांबा RAKKKKKKAKKKKKKKXXXXXXXX ३ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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