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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie १ स्थानाध्ययने श्रीस्थानागसूत्र सानुवाद ॥ १२ ॥ १ सूत्रम्. प्रधानतावडे प्रशस्त अथवा घणु आयुष्य हे विद्यमान जेने ते आयुष्मन् तेना संबोधनमां हे आयुष्मन् शिष्य ! 'नेणं'तिजे नजीक, आंतरावाळु, सूक्ष्म, बादर, बाह्य अने अभ्यंतर सकल पदार्थोंने विपे अबाधित बोलवापणुं होवाथी यथार्थ वक्तापणे जगतमा प्रख्यात, अथवा पूर्वभवमा मेळवेल छे तीर्थकरनामकर्मादि लक्षणरूप परम पुण्यनो समूह जेणे, विनाश थई छ अनादि कालनी लागेली मिथ्यादर्शनादि वासना जेनी, छोडेल छे महान् राज्यवैभव जेणे, देवादिना उपसर्ग समूहना संसर्गवडे अविचलित छे शुभ ध्यानमार्ग जेनो, सूर्यनी माफक घनघाती कर्मरूप निविड वादळाना समूहने तोडवावडे प्रकाश पामेल छ निर्मल केवलज्ञानरूप भानुमंडल जेमनु, इंद्रोरूप भ्रमरोना समूहे सेव्या छे चरणकमल जेना, मध्यमा नामे नगरीमा प्रथम थयेल छे प्रवचन | जेनुं एवा श्री महावीर प्रभु, भगवता' अष्ट महाप्रातिहार्य[ अशोकवृक्षादि ]रूप समस्त जैश्वर्यादि सहित ते भगवाने, एवमिति आ आगल कहेवाशे एवा एकत्वादि प्रकारवडे 'आख्यातमिति आ एटले जीव, अजीवनां लक्षणनी असंकीर्णता[एक बीजामा मळी न जाय ते] रूप मर्यादावडे, अथवा समस्त पदार्थना विस्तारथी व्यापक लक्षणरूप अभिविधिवडे 'ख्यातं'-आत्मादि वस्तुनो समूह कहेल छे. अहिं 'श्रुतमिति-आ निर्णयने कहेनार शब्दवडे पोते चोक्कस करेलं होय ते ज | | बीजाने कहेवा योग्य छ एम कर्दा; अन्यथा कहेवामां ऊलटो दोषनो संभव छे. कयुं पण छे केकिं एत्तो पावयरं ?, सम्म अणहिगयधम्मसब्भावो । अन्नं कुदेसणाए, कट्ठयरागमि पाडेइ ॥२७॥ नथी जाणेल सिद्धांतनो सद्भाव जेणे एवो ते उन्मार्गनी देशनावडे बीजाने महाकष्टकारी अपराधमां पाडे छ (अने L LEUSTILLELSELENANIYA ॥१२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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