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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ।। १२२ ।।
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ळाई, ऊंचाई, संस्थान अने परिधिवडे, ते आ-चुल्लहिमवान कूट अने वैश्रमण कूट. जंबूद्वीपना मेरुनी दक्षिण दिशाए महाहिमवान नामे वर्षधर पर्वतमां वे कूट कहेल छे, ते आ-बहुसमतुल्य यावत् महाहिमवान कूट अने वैडूर्य कूट. एवी रीते निषध नामना वर्षधर पर्वतमांचे कूट कहेल छे, ते आ-बहुसमतुल्य यावत् निषध कूट अने रुचकप्रभ कूट. (४), जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर दिशाए नीलवान नामे वर्षधर पर्वतमां बे कूट कहेल छे, ते आ-बहुसमतुल्य यावत् ते आ-नीलवान कूट अने उपदर्शन कूट. एवी रीते शिखरी नामे वर्षधर पर्वतमां बे कूट कहेल छे, ते आ-बहुसमतुल्य यात्रत् ते आ-शिखरी कूट अने तिमिच्छ कूट. (५). ( मू० ८७).
टीकार्थ :- 'जंबू' इत्यादि० वर्ष - क्षेत्र विशेषनी व्यवस्था करनारा होवाथी बन्ने वर्षधर छे. 'चुल्लो 'त्ति० मोटानी अपेक्षाए लघुहिमवान ते चुल्लहिमवान भरतक्षेत्र पछी अंतर रहित (उत्तरमां) छे. वळी शिखरी पर्वत ऐवत क्षेत्रनी आगळ छे, ( अर्थात् शिखरीथी उत्तरमां ऐवत क्षेत्र छे). अने ते बे पर्वत पूर्व अने पश्चिमी लंबाईबडे लवणसमुद्र सुधी जोडायेला छे. चवीस सहस्ताई, णत्रय सए जोयणाण बत्तीसे । चुल्लहिमवंतजीवा, आयामेणं कलद्वं च ॥४५॥
हिमवान पर्वतनी जीवा लंबाईवडे चोवीश हजार, नवशें बत्रीस योजन अने अर्द्धकला छे. एवी रीते शिखरी पर्वतनी जीवा जाणवी तथा बन्ने पर्वत भरतक्षेत्रथी बमणा विस्तारवाळा, एक सो योजन ऊंचा, पच्चीश योजन जमीनमां ऊंडा, आयत अने चतुरस्र (लंबचौरस) संस्थानवडे रहेला छे ते बनेनी परिधि नीचे प्रमाणे छे
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१२ स्थानका
ध्ययने
उद्देशः ३
वर्षधरादि
स्वरूपम्
८७ सूत्रम्
॥ १२२ ॥