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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie २ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ पुद्गलभेदादिः ८२-८३ XX श्रीस्था- ग्रहण नहि करायेल (१), एवी रीते यावत् मणामा सुधी बब्बे भेद जाणवा. (२-६). एवी रीते गंध, रस अने स्पर्शना बब्बे | नाङ्गसूत्र भेद जाणवा. एवी रीते एकेकमा छ आलापको कहेवा. (१३-३०) (सू० ८३). सानुवाद टीकार्थ:-'दोहीत्यादि० पांच सूत्रो सुगम छे. विशेष ए छ के-'स्वयं वेति. स्वभावथी जेम वादळा वगेरेने विषे ॥ ११०॥ * पुद्गलो संबंधवाळा थाय छे तेम, (आ कर्मकतृप्रयोग छे.) 'परेण वा' तथा पुरुष आदिवडे पुद्गलो संबंधवाळा कराय छे. (आ सकर्मकप्रयोग छ ) (१), एवी रीते भेदाय छे-जुदा पडे छे. (२), तथा पर्वतना शिखरथी जेम पडे छे तेम पुद्गलो पडे छे. (३), कोढ वगेरेना निमित्तथी जेम आंगळी वगेरे सडे छे तेम पुद्गलो सडे छे. (४), वादळाना समूहनी जेम पुद्गलो नाश पामे छे. (५). हवे बार सूत्रवडे पुद्गलोर्नु ज निरूपण करता थका कहे छे-'दुविहे'त्यादि० जुदा पडेला अने जुदा न पडेला. (१), जे पोतानी मेळे भेदाय छे ते भिदुर अर्थात् भिदुरत्व धर्म छे जेओने ते भिदुरवाळा (आ वाक्यमां भाव प्रत्यय अंतर्भूत छे), भिदुरत्व धर्मथी विपरीत ते नोभिदुरधर्मवाळा [ वज्र वगेरे ]. (२), जे अत्यंत सूक्ष्म ते परमाणुपुद्गलो अने स्कंधो ते नोपरमाणुपुद्गलो. (३), जेओनो सूक्ष्मपरिणाम छे तेमज शीत, उष्ण, स्निग्ध अने रुक्ष लक्षणविशिष्ट चार ज स्पर्शवाळा ते भाषा वगेरे चार वर्गणाना पुद्गलो सूक्ष्म छे, अने बादरो तो जेओनो बादर परिणाम छे तेमज पांच वगेरे स्पर्शवाळा जे छ ते औदारिक वगेरे वर्गणाना पुद्गलो छे. (४), शरीरनी चामडीथी रजनी जेम स्पर्शायला ते पार्श्वस्पृष्टो, तेओथी बधायेलाशरीरमा पानी जेम अतिशय मळला, पार्श्वस्पृष्टरूप बंधायेला ते बद्धपश्चिस्पृष्टपुद्गलो. अहिं राजदंतादिगणथी 'बद्ध' शब्दनो प्रथम प्रयोग करेल छे. कयु छ के-पुढे रेणुं व तणुंमि बद्धमप्पीकयं पएसेहिं ' ति० स्पृष्ट-शरीरमा रजनी जेम XXXXX सूत्र XXXXXXXXXKAKK) KXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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