SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxXXXXXXXXX जाव वेमाणिया ७, दुविहा नेरइया पं० २०-पजत्तगा चेव अपजत्तगा चेव, जाव वेमाणिया ८, दुविहा नेरइया पं० २०-सन्नि चेव असन्नि चेव, एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिंदियवज्जा, जाव वाणमंतरा (वेमाणिया) ९, दुविहा नेरइया पं० २०-भासगा चेव अभासगा चेव, एवमेगिंदियवज्जा सव्वे १०, दुविहा* नेरइया पं० २०-सम्मद्दिट्ठीया चेव मिच्छद्दिट्ठिया चेव, एगिंदियवज्जा सव्वे ११, दुविहा नेरइया पं० तं.-परित्तसंसारिता चेव अणंतसंसारिया चेव, जाव वेमाणिया १२, दुविहा नेरइया पं० त०संखेज्जकालसमयट्रितीया चेव, असंखेज्जकालसमयद्वितीया चेव, एवं पंचेंदिया एगिदियविगलेंदियवजा जाव वाणमंतरा १३, दुविहा नेरइया पं० तं०-सुलभबोधिया चेव दुलभबोधिया चेव, जाव वेमाणिया १४, दुविहा नेरइया पं० २०-कण्हपक्खिया चेव सुक्कपक्खिया चेव, जाव वेमाणिया १५. दविहा नेरडया पं० तं०-चरिमा चेव अचरिमा चेव, जाव वेमाणिया १६ । स. ७९ मूलार्थ:-वे प्रकारे नैरयिको कहेला छे, ते आ प्रमाणे-भवसिद्धिको अने अभवसिद्धिको, यावत् वैमानिक पर्यंत बब्बे | भेद जाणवा. (१), बे प्रकारे नैरयिको कहेला छे, ते आ-अनंतरोपपन्नको अने परंपरोपपन्नको, यावत् वैमानिक पर्यंत पूर्ववत् | XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX** *EXK** For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy