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योग्य छे. पीपर अने हरडे आचीर्ण छे अने खजुर ने द्राक्ष वगेरे अनाचार्ग छे. हरताल बगेरे सर्व वस्तुओनां सामान्यपणे अचित्त थवानां कारणो कहे छे-गाडा, पोठिया (बळद) वगेरे वाहनो उपर चडावतां अने उतारता, लवणादिना ढगला वगेरे उपर बेसवा वगेरेथी, बळदो वगैरेनी पीठ आदि शरीरनी गरमीथी, उत्पत्तिक्षेत्रनी भूमिनो आहार न मळवाथी अने शखना उपक्रमथी अचित्त थाय छे.
परिणामांतर प्राप्त थये छते पण पृथ्वीकायिको ज कहेवाय छे, ते मात्र अचेतन छे. एम जो नहि मानीए तो आ अचेतन पृथ्वीकाय पिंडना प्रयोजन( उपयोगिता )नु कथन केम घटमान थाय ? जेम-"घट्टगडगलगलेवो एमाइ पयोयणं बहुहा । " घट्टक-पात्र वगेरेने घसवामां डगलक-इंट अने लेप वगेरे अचित्त पृथ्यांनो साधुओने बहुधा उपयोग करवो पडे छे. (११), 'एवमित्यादि पांच सूत्रो पूर्वनी माफक कहेवा (१२-१५), द्रवन्तिविचित्र पर्यायो पामे ते द्रव्यो, जीव अने पुद्गलरूप ते द्रव्यो. विवक्षित परिणामना त्यागवडे परिणामान्तरने प्राप्त थयेल ते परिणत द्रव्यो विवक्षितपरिणामवाळा ज छे. जे परिणामांतरने नहि पामेला ते अपरिणत द्रव्यो. आ प्रमाणे छ हुँद्रव्य सूत्र जाणवू (१६), 'दुविहे'त्यादि० छ सूत्रो, गमनपणाने पामेला-गतिवाळा ते गतिसमापन्ना. पृथ्वीकायिक वगेरेना आयुष्यना उदयथी जे पृथ्वीकायिकादि व्यपदेशवाळा विग्रहगतिवडे उत्पत्तिक्षेत्रमा जाय छे ते गतिसमापन्न कहेवाय छे. अगतिसमापन्नजीवो तो स्थितिवाळा (जे गतिमा छे ते ज गतिमा रहेला) छे. (१७-२१), द्रव्यसूत्रमा गति-गमनमात्र ज जाणवू, बाकीर्नु पूर्ववत् | छे. (२२), 'दुविहा पुढवीत्यादि० छ सूत्रो, अनंतर-वर्तमान समयमांज कोइक आकाशदेशमा रहेला तेज अनंतरावगाढको अने
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