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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ७९ ॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ४२ स्थानकाचेव अपडिवाई चेव ४. मिच्छादंसणे दुविहे पं० २०-आभिग्गहियामिच्छादसणे चेव अणभिगहियमिच्छादंसणे चेव ५, अभिग्गहियमिच्छादंसणे दुविहे पं० ध्ययने तं० उद्देशः१ सपजवसिते चेव अपजवासिते चेव ६, एवमणभिगहियमिच्छादसणेऽवि ७। सू० ७० सम्यग्मिमूलार्थः–चे प्रकारचें दर्शन कहलं छे, ते आ प्रमाणे-सम्यग्दर्शन अने मिथ्यादर्शन (१), सम्यग्दर्शन के प्रकारचें ध्यादर्शनं कहेलं छे, ते आ प्रमाणे-निसर्ग ( सहज ) सम्यग्दर्शन अने अभिगम (उपदेशथी थयेल ) सम्यग्दर्शन (२), निसर्ग सम्यग्दर्शन के प्रकारनुं छे, ते आ प्रमाणे-प्रतिपाति अने अप्रतिपाति (३), अभिगम सम्यग्दर्शन बे प्रकारनुं छे, ते आ ७० सूत्रम् प्रमाणे-प्रतिपाति अने अप्रतिपाति (४), मिथ्यादर्शन के प्रकारनुं छे, ते आ प्रमाणे-अभिग्रहिक (खोटा मतना आग्रहरूप) | मिथ्यादर्शन अने अनभिग्रहिक ( कोई पण मतना आग्रह रहित अर्थात् सर्वने सरखा गणवारूप) मिथ्यादर्शन (५), अभि-* ग्रहिक मिथ्यादर्शन के प्रकारनुं छे, ते आ प्रमाणे-सपर्यवसित (अंत सहित ) अने अपर्यवसित (अंत रहित ) (६), एवी रीते अनभिग्रहिक मिथ्यादर्शन पण चे प्रकारनुं जाणवू (७). (मू० ७०). टीकार्थ:-'दुविहे दंसणे इत्यादि सात सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-दर्शन एटले तच्चोने विषे रुचि. सम्यग्-अविपरीत x (जिनदर्शनने अनुसरनारुं ) ते सम्यग्दर्शन तथा मिथ्या-विपरीत दर्शन ते मिथ्यादर्शन (१). 'सम्मइंसणे इत्यादि| निसर्ग-स्वभाव अने अनुपदेश ए शब्दो एक अर्थवाळा छे. ( गुरुना उपदेश सिवाय ते निसर्ग). अभिगम-अधिगम ॥ ७९ ॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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