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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Si Kalassagarsur Gyarmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ७८॥ दंड अने अनर्थदंड. नैरयिकोने बे दंड कहेल छे, ते आ प्रमाणे-अर्थदंड अने अनर्थदंड, एवी रीते चोवीश दंडकमां यावत् वैमानिकोने बे दंड कहेल छे. (मू० ६९) | टीकार्थः-समा-कालविशेष. बाकी- सुगम छे (सू० ६७). केवळज्ञान, मोहनीयकर्मथी उत्पन्न थयेल उन्मादना क्षयथी थाय छे. आ कारणथी सामान्यपणे उन्मादनुं स्वरूप कहे छे-'दुविहे उम्माणे ' इत्यादि, उन्माद-ग्रह (ग्रहायेल) अर्थात् बुद्धिनुं विपरीतपणुं. यक्षावेशः-शरीरमां देवनुं प्रवेशपणुं, तेथी थयेल उन्माद ते यक्षावेश एक छे अने दर्शनमोहनीय वगेरे कर्मना उदयथी जे थयेल ते बीजो उन्माद. ते बेमा जे यक्षावेशवडे थाय छे ते बहु सुखपूर्वक वेदी शकाय छे, अर्थात् मोहबडे उत्पन्न थयेल उन्मादनी अपेक्षाए घणो ज ओछो अनुभवी शकाय छे, कारण के यक्षावेशने अनेकांतिक अने अनात्यंतिक भ्रमपणुं होय छे. वळी जे बहु सुखे दूर करी शकाय छे तेज सुखविमोच्यतरक छे, कारण के यक्षावेश मंत्र । औषधि अने यंत्रादिवडे साध्य छे. अथवा अत्यंत सुखवडे दर करवा योग्य, तथा जे यक्षावेश प्राणीने अत्यंत सुखवडे ज छोडे छे ते सुखविमोचतरक. बीजो मोहथी थयेल उन्माद तो यक्षावेशथी विपरीत छे, कारण के ऐकांतिक अने आत्यंतिक भ्रम स्वभावपणाए अत्यंत अयोग्य प्रवृत्तिना हेतुपणाए अनंतभवर्नु कारण छ. वळी बीजा अंतर-पेटा कारणना उत्पन्न थवाने लीधे मंत्रादिवडे असाध्य छे, पण कर्मना क्षयोपशमादिवडे ज साध्यपणुं छे. आ कारणथी ज कहेलुं छे:-दुहवेय १. यक्षावेश थ येल व्यक्ति कोइ बग्वने शुद्विमा पण हेोय छे नेथी डाह्या माणस प्रमाणे प्रवृत्ति करे छे. २ स्थानका ध्ययन उद्देशः१ समाउन्माददण्डा: ६७-६९ सूत्राणि RAKXKXXXXXXXXXXXXXXXXX MAXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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