SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ६९ ॥ www.kobatirth.org 'त्ति - बीजाना हाथथी स्वदेह अने परदेहने परिताप करावता थकां जे थयेली क्रिया ते परहस्तपारितापनिकी. (९) वली वे क्रिया कहे छे- 'पाणाइवायकिरिया चेव'त्ति-आनो अर्थ सुगम छे, तथा 'अपच्चक्खाणकिरिया चैव'त्ति-अप्रत्याख्यानअविरतिना निमित्तथी थयेल जे कर्मबंध ते अप्रत्याख्यान क्रिया, ते अविरतिओने होय छे. (१०). प्राणातिपात किया वे प्रकारे--'सहत्थपाणाइवायकिरिया चेव' त्ति-निर्वेद (कंटाळा) वगेरेथी पोताना प्राणोने पोताना हाथे अथवा क्रोधादिवडे पारकाना प्राणोने नाश करनारनी जे क्रिया ते स्वहस्तप्राणातिपात क्रिया, तथा 'परहत्थपाणाइवायकिरिया चैव 'प्ति - बीजाना हाथे पोताना अथवा परना प्राणोने नाश करावनारनी जे क्रिया ते परहस्तप्राणातिपात क्रिया. (११). बीजी अप्रत्याख्यान क्रिया पण प्रकारे छे - 'जीव अपच्चक्खाणकिरिया चेव' त्ति - जीवना विषयमां प्रत्याख्याननो अभाव ( न करवा) वडे जे बंध वगेरेनी | प्रवृत्ति ते जीव अप्रत्याख्यान क्रिया तथा 'अजीव अपच्चक्खाणकिरिया चेव' त्ति - अजीवो-मद्यादि विषे अर्थात् तेना पच्चखाण न करवाथी जे कर्मनो बंध ते अजीव अप्रत्याख्यान क्रिया. (१२). बळी बीजी रीते वे क्रिया कहेली छे 'आरंभिया चेव' त्ति- आरंभ ते आरंभ, तेमां थयेली जे क्रिया ते आरंभिकी क्रिया, तथा 'परिग्गहिया चेव' त्ति-परिग्रहने विषे जे थयेली क्रिया ते पारिग्रहिकी. (१३). आरंभिकी वे प्रकारे छे-'जीवआरंभिया चेव' त्ति-जीवोना उपमर्दन करनारने जे कर्मबंधन ते जीवआरंभिकी क्रिया, तथा 'अजीवारंभिया चेव'त्ति - अजीवोने, जीवोना कलेवरोने, पिष्ट (लोट) वगेरेथी बनावेली जीवती आकृतिओने अथवा वस्त्रादि प्रत्ये आरंभ करनारनी जे क्रिया ते अजीवआरंभिकी, (१४), 'पारिग्गहिया चेव'त्ति-आ पारिग्रहिकी क्रिया आरंभिकी क्रियानी जेम वे प्रकारे जाणवी, कारण के ते क्रिया जीवपरिग्रह अने अजीवपरिग्रहथी थाय छे. (१५). वळी बीजी रीते वे क्रिया 'मायावतिया For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २स्थानका ध्ययने क्रियाणां द्वैविध्यम् ५८-६० सूत्राणि ॥ ६९ ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy