SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXxxxxxxxx कराय छे ते अधिकरण-अनुष्ठान-(कार्य) अथवा बाह्य वस्तु. अहिं बाह्य वस्तु विवक्षित छे. खड्गादिमां थयेली जे | क्रिया ते अधिकराणिकी. (४). कायिका क्रिया के प्रकारे छ-'अणुवरयकायकिरिया चेवत्ति-सावध(पाप)थकी जे विराम न पामे एवा मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यग्दृष्टि जीवनी काय क्रिया, उत्क्षेपण एटले ऊंचे फेंकवू वगेरे लक्षणवाली कमबंधना कारणभूत-अनुपरतकायक्रिया, तथा 'दुप्पउत्तकायकिरिया चेव'त्ति-दुःप्रणिहित-दुष्ट प्रयोगवाळानी दुष्ट प्रवृतिविशिष्ट, इंद्रियोने आश्रयीने इष्ट अनिष्ट विषयनी प्राप्तिमां कंइक संवेग अने निर्वेद( उदासीनता)मा जवावडे, तथा अनिद्रिय(मन)ने आश्रयीन अशुभ मनना संकल्पद्वारा मोक्षमार्ग प्रत्ये माठी रीते रहेल एवा प्रमत्तसंयतनी जे कायक्रिया ते दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया. (५). तथा आधिकरणिकी क्रिया के प्रकारे छे. तेमां 'संजोयणाहिगरणिया चेव'त्ति-पूर्वे बनावेला खड्ग अने तेनी मूठ वगेरे वस्तुनुं जे संयोजन-जोडाण करवू ते संयोजनाधिकरणिकी क्रिया अने 'णिव्वत्तणाहिगरणिया चेव'त्ति-जे पहेलाथी ज खड्ग अने तेनी मूठ वगेरेने तैयार करी राखq ते निवर्तनाधिकरणिकी क्रिया (६). वली बीजी क्रिया वे प्रकारे छ 'पाउसिया चेव'त्ति-मत्सरवडे करायेली ते प्रादेषिकी क्रिया, तथा 'पारियावणिया चेव'त्ति-परितापन( ताडनादि दुःखविशेष स्वरूप )वडे जे थयेली क्रिया ते पारितापनिकी क्रिया. (७). प्राद्वेषिकी क्रिया बे प्रकारे-'जीवपाउसिया चेव'त्ति-जीवने विषे प्रद्वेष करवाथीथयेली जे क्रिया ते जीवप्राद्वेषिकी तथा 'अजीवपाउसिया चेव'त्ति-पाषाणादि अजीचमा स्खलना पामेलाने द्वेष थवाथी जे थयेली क्रिया ते अजीवप्राद्वेषिकी. (८). बीजी पण बे प्रकारे-'सहत्थपारियावणिया चेवत्ति-पोताना हाथथी पोताना शरीरने अथवा बीजाना शरीरने दुःख (क्लेश ) करता थकां जे थयेली क्रिया ते स्वहस्तपारितापनिकी तथा 'परहत्यपारियावणिया (KKKKKKX-KKK-XXKKAKKAKKXEXKAKKAKKKAKKKKKX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy