SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX दा. त. गधेडानुं शींगईं. जे वस्तु छे ते सामान्य रहित नथी; जेमकं घडो. वळी सामान्यवादी विशेषवादीने कहे छे के तमे विशेषो, | सामान्यथी अन्य-भिन्न स्वीकारो छो अथवा अनन्य-अभिन्न ? जो सामान्यथी विशेषो जूदा कहेशो तो ते असत्-अछता छ, कारण के सामान्य रहित होवाथी ते आकाशना फूलनी जेम असत् छे. जो विशेषो सामान्यथी जुदा नथी तो सामान्य मात्र ज छे. अथवा सामान्यमा विशेषनो उपचार जो होय तो उपचारखडे वस्तुना तत्त्वर्नु चिंतन नहिं थाय. भाष्यकार कहे छे:एक निच्चं निरवय-वमकियं सव्वगं च सामन्नं । निस्सामन्नत्ताओ, नत्थि विसेसो खपुष्पं व ॥१२१ ॥ ___ तथा-सामन्नाओ विसेसो, अन्नोऽनन्नो व होज ? जइ अन्नो। सो नत्थि खपुप्फं, पिवऽणन्नो सामन्नमेव तयं ॥ १२२ ॥ (युग्मम्) आ बन्ने गाथानो भावार्थ उपर कहेवायेल छे. आत्मादि पदार्थोर्नु एकपणुं सामान्यनयथी कहेल छ. विशेषनयना मतथी तो आत्मादिनुं अनेकपणुं ज छे. विशेषवादी कहे छे-सामान्य, विशेषोथी भिन्न छ के अभिन्न ? भिन्न नथी, कारण के आकाशना फूलनी जेम तद्दन प्रत्यक्ष नथी. वळी विशेषोथी सामान्य भिन्न नथी, कारण के दाह, पाक, स्नान, पान, अवगाह, वाह अने दाह आदि सामान्य शब्दवडे सर्व संव्यवहारनो गधेडाना शींगडानी जेम अभाव छे, तेथी कई पण व्ययहार थई शकशे नहिं. जो सामान्य अभिन्न छे तो विशेष मात्र ज वस्तु छ, सामान्य नाम ज नथी. अथवा विशेषामा सामान्य मात्रनो उपचार करेल छे, एम जो कहेशो तो उपचारवडे वस्तुतच नहि विचारी शकाय. भाष्यकार कहे छ XXXXXXXXXXXXX ***XXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy