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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXXX KXKKKKXXXXXXXXXXXXXXXXKKKKKKKKKXXw फळो छ जेने ते 'व्यर्थ ' छे. प्राकृत भाषाथी 'तित्थ' शब्द छे. भाष्यकार कहे छकोहग्गिदाहसमणा-दओव ते चेव तिन्नि जस्सऽत्था।होइ तियत्थं तित्थं तमत्थसद्दोफलत्थोऽयं ॥१०॥ ___गाथानो भावार्थ उपर्युक्त छे. अहिं अर्थ शब्द फलवाचक छ, अथवा ज्ञानादि त्रण अर्थो-वस्तुओ छ जेने ते व्यर्थ. वळी भाष्यकार कहे छ: अहवा सम्मइंसण-नाणचरित्ताइं तिन्नि जस्सऽत्था।तं तित्थं पुब्बोदिय-मिहमत्थो वत्थुपज्जाओ ॥१०९॥ ___अहिं अर्थ शब्द वस्तुनो पर्यायवाचक छे. शेषपदो उक्त भावार्थ छे. तेमां तीर्थ छते जे सिद्धो-निवृत्त थया ते ऋषभसेन गणधर वगैरेनी जेम तीर्थसिद्धो छे. तेओनी वर्गणा एक छे (१). अतीर्थ-तीर्थातरमा साधुओना अभावकालमां जातिस्मरणादिवडे प्राप्त करेल छे मोक्ष जेओए ते मरुदेवीनी माफक अतीर्थसिद्धो छे. तेओनी वर्गणा एक छे (२). ' एवं ' शब्दथी 'एगा तित्थगरसिद्धाणं वग्गणे 'त्यादि जाणवू. उक्त लक्षणवाळा तीर्थने अनुकूलपणाए, हेतुपणाए अथवा तेना स्वभावपणाए जे करे छे ते तीर्थकर कहेवाय छे. भाष्यकार कहे छेअणुलोमहेउतस्सी-लयाय जे भावतित्थमेयं तु । कुव्वंति पगासंतिउ,तेतित्थगरा हियस्थकरा ॥११०॥ १. अहि संघ, वस्तु अने ज्ञानादि, संघना पर्यायो छे, ते वस्तुथी अभिन्न छे. २. प्रवाहनी अपेक्षाए. तीर्थ अनादि छे, तो पण प्रत्येक तीर्थकरोनी अपेक्षाए तीर्थ उत्पन्न थाय छे ते कारणथी तीर्थातर कहेवाय छे. KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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