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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद 11 48 11 XXXXXX ************************* www.kobatirth.org जाणवुं. ' एवं जस्स जति ' ति नारकोनी माफक ज जे असुरादिकनी जे जेटली लेश्याओं छे, तेना कथनवडे तेनी वर्गणानुं एकपणुं कहे. 'भवणे 'त्यादिना सूत्रवडे तेओनी लेग्याओनो परिणाम कहता अहिं संग्रहणीनी गाथा जणावे छे. काऊ नीला किहा, लेसाओ तिन्नि होंति नरएसुं । तइयाए काउनीला, नीला किण्हा य रिट्ठाए ॥ १०१ ॥ नरकोने विषे कृष्ण, नील अने कापोत ए त्रण लेश्या [ सामान्यतः ] छे. त्रीजी नरकमां कापोत अने नीललेश्या छे अने पांचमी रिष्ठा नरकमां नील अने कृष्णलेश्यां छे. (१०१ ) किण्हा नीला काऊ, तेऊलेसा य भवणवंतरिया । जोइससोहंमीसाण, तेउलेसा मुणेयव्वा ॥ १०२ ॥ कप्पे सणकुमारे, माहिंदे चेव बंभलोए य । एएसु पम्हलेसा, तेण परं सुक्कलेसा उ ॥ १०३ ॥ भवनपति अने व्यंतरने कृष्ण, नील, कापोत अने तेजोलेश्या होय छे, ज्योतिष्क, सौधर्म अने ईशान देवलोकमां एक तेजोलेश्या जाणवी, सनत्कुमार, महेंद्र अने ब्रह्मलोक कल्पमां पद्मलेश्या छे, तेनाथी उपर एक शुक्ललेश्या छे. (१०२-१०३) पुढवी आउवणस्सइ, वायर पत्तेय लेस चत्तारि । गब्भयतिरियनरेसुं, छल्लेसा तिन्नि सेसाणं ॥ १०४॥ बादर पृथ्वी, पाणी अने प्रत्येक वनस्पतिमां कृष्णादि चार लेश्या छे, गर्भज तिर्येच अने मनुष्यमां छ लेश्या छे, शेष१ पहेली -बीजी नरकमां कापोतलेश्या, चोथी नरकमां नीललेश्या अने छट्ठी तथा सातमोमां कृष्णलेश्या छे. २ छठ्ठा देवलोकथी यावत् सर्वार्थसिद्धि वैमान पर्यंत. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ स्थाना ध्ययने लेश्यावर्णनम् ५१ सूत्रम् ।। ५४ ।।
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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