SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नागसूत्र सानुवाद ॥ ५० www.kobatirth.org पृथ्वीकायिक वगेरेमां उच्छ्वासादि धर्मोनी प्रतीति थती नथी. समाधान - आप्तवचनथी अने अनुमानप्रमाणथी प्रतीति थाय छे. तेमां आ प्रस्तुतसूत्र आप्तवचन छे. अनुमान तो आ प्रमाणे - वनस्पतिओ, परवाला, लवण अने पत्थर वगेरे पोतपोताना (उत्पत्ति ) स्थानमां वर्तता समानजातीयरूप अंकुरोनो सद्भाव होवाथी अंशेना विकाररूप अंकुरनी माफक जीव सहित छे. भाष्यकार कहे छे संकुरोव्व सामा-णजाइरुवकुरोवलंभाओ । तरुगणविद्दुमलवणो-पलादयो सासयावत्था ॥ ९२ ॥ आ गाथानो भावार्थ उपर आवेल छे. आ प्रस्तुत प्रसंगमां ' समानजातीय ' शब्दनुं ग्रहण करेल छे ते गाय वगेरेना शींगडाना अंकुरनो निषेध करवा माटे, कारण के ते समानजातीय थतो नथी. तथा भूमि संबंधी जळ, पृथ्वीने खोदते छते स्वाभाविक जळनो संभव होवाथी देइँकानी माफक जीव सहित छे. अथवा आकाश संबंधी पाणी, स्वभावथी आकाशमां थल ( पाणी ) ना पडवाथी मत्स्येंनी माफक जीव सहित छे. वळी भाष्यकार कहे छे: १. जेम हरस अथवा मसाना मांस अंकुरने कापवाथी पण फरीने वृद्धि पामे छे तेम परवाला वगेरेने छेदवाथी फरी उत्पन्न थाय छे जेथी ते जीव सहित छे. २. आ गाथाना भावार्थथी पृथ्वीकायिक जीवोनी सिद्धि करो छे. ३. भूमिमांथी नीकळेल देडको जेम सजीव छे तेम पाणी पण जीत्र सहित छे. आ पृथ्वी संबंधो पाणीमां जीवनी सिद्धि करवा माटे दृष्टांत आपेल छे. ४. माछलानुं दृष्टांत अंतरिक्षनुं पाणी जीव सहित छे तेनी सिद्धि माटे छे. हस्ता अने चित्रा नक्षत्रमां घणे स्थले माछला पडे छे ते प्रत्यक्ष देखाय छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ११ स्थाना ध्ययने स्थावराणां जीवत्वं ५.१ सूत्रम् ॥ ५० ॥
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy