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परि० १०]
पद्मावतीचतुष्पदीका। तुह बीयक्खर जो समरेइ मनवंछितफल सो पामेइ ॥१०॥ भणइहि जोगी मज्झिम नीय धरि चित्तदक्खर सिरिगुरुरीय । जोडवि ससहर ईसर उड्ढ तव कल जाणइ कोवि वियड्ढ ॥११॥ भूअंतिल सुवच्छिम सहिय चिंतवि अंतिम पय परिगहिय । अड्ढवि उड्ढवि बिंदु धरेयवि धण्ण झु झायइ पउमिणि देवि ॥९२॥ सुण्ण जलण तुरियस्सरजुत्त अमियकिरणकलगयण पवित्त । गुरुउवएसिइं जवइ जु लक्ख पउमएवि तसु 'पूरइ पक्ख ॥१३॥ दिसिकालायण पल्लववण्ण मुद्दा जाणिवि जो कयपुण्ण । एह विजाचूडामणि सरइ कम्मछक्क ते लीलइ तरइ ॥१४॥ संति पुट्टि विद्देसण मोह मारण वसि उच्चाडणरोह । एउ वि झत्तिय लोयपयास कवण कवण न ह परइ आस ॥१५॥ पढम पणव माया सम्भारि नमणउ अंतिए वण्ण वियारि । जो समरइ अणुदिण वरभावि सव्वसिद्धि तसु परिणइ आवि ॥१६॥ भूयपेयडाइणिगण डरइ सयलह दुजण मण परहरइ । एह विज्जु समरंतइ लोइं भम्मदा य पुहवी सिर होइ ॥१७॥ विजा एसा लोकपहाण चिंतामणि कप्पद्दुसमाण । पहु जिणदत्तसूरि उवएसि थंभइ परबल अद्धनिवेसिं ॥१८॥ हंसगमणि नीलुप्पलनयणि कुंददसणि पुण्णिमससिवयणि । बहुखयणी मुणसहरणि नवकिसलयकोमलवरचरणि ॥१९॥ पीणसिहिणभारोग्णय अङ्गि हावभावसिंगारसुचंगि । एकक्खरि जे नर समरंति ताहं तियसकामिणि वय हुंति ॥२०॥ देउ पाप पउमिणि धरणिंदु बारस परजुयहरिकलबिंदु । पउम पउमकोडनी नम अन्त सयलकाम तुह पूरइ मन्त ॥२१॥ जंभ थंभ मोहे धमयंति जय अपराजिय विजय जयन्ती । चण्डी भइरव तोतल ताल सहइ इक्कश्चिय विविहपयार ॥२२॥ खित्तवाल जोइणि चउसहि भूयपेयडाइणिगहदिहि । अवरवि दुद्धर विग्ध जि केवि नामगहणि नासइ तुह देवि ! ॥२३॥ जे धण्णंतरि विज्झ असज्झ ते उवादि एहु सामि सुसज्ज । नीर जलण थंभइ तुह आण समरंगिणि वारइ अरिबाण ॥२४॥ पइसट्ठी जंति चिइ भुवणि भइवइ सम्मतु लंभिय सवणि । कंपइ धरणीयल धणई लडफडंति दस दिसि माइ ॥२५॥ १ फुरइ पचास
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