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परिशिष्ट १० श्रीजिनप्रभसूरिविरचिता
पद्मावतीचतुष्पदिका।
जिनसासन अवधारि करेवि झायहुँ सिरिपउमावइ देवी । भवियलोयआणंद करेउ दुलहउ सावयजम्म लहेउ ॥१॥ मनरि मिच्छसूर अणुसरह
॥आंचली। पासनाहपयपंकयभसलि ! संघविघननिन्नासणकुसलि !। ससिकरनिम्मलगुणगणपुण्ण ! पउमएवि ! मह होउ पसण्ण ! ॥२॥ तारतरल तुह लोयण तिण्णि दुहदलणा भूयदुगण दुण्णि । पियसी पारुहपविहत्थे वारण दीसे तह हत्थी ॥३॥ फूलफालफणिमणिकरजाल दसदिसि पसरइ तुज्झ कराल । जिणि दीठई पडिबोहिय सहइ विग्ध तिमिर जिणिं जग अवहरइ ॥४॥ कुंडलमंडलमंडियगल्ल अरिखंडणभुयदंडपयंड । घणथणघोलिरनिम्मलहार पउमावइ नंदउ जगि सार ॥५॥ नेउरझुणिबहिरियदिसिचक खग्गदंडखंडियरिउचक्क । मणिकंचणचंचुइभपउट्ठ पउमि होहि भवियह संतुट्ठ ॥६॥ मेहलमुहलियसोणिपएसि अलिकुलकोमलदीहरकेसि । जलधरणीदहउत्तमरमणि पउमएवि भू मयगलगमणि ॥७॥ पासंकुसवरपहरणपाणि तंबचूडविसहरवरझाणि । पउमपत्तसमवण्णसरीर ! पउमएवि मा मे अवहीर ॥८॥ भत्तिनमंतसुरासुररमणि मणिकिरीडकररंजियचलणि । किं भमई नरमित्त वराय आराहहू सुरवर तुह पाय ॥९॥ तालु ऐं च झंखर ललिय वीयउ ससिदल लहयलकीलउ ।
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