________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्मावतीचतुष्पदीका।
[ परि० १० कुलपव्वय सत्तवि टलटलइ अनु सत्तवि जलनिहि उच्छलइ । किडि किडिंत उक्कड किडि दाढ भजइ फगिवइ फण अइगाढ ॥२६॥ दढ गढ गिरिवर खडहडि पडइ सुरनर जीविय संसई चडइ । हल्लोहल्लिई जलहरपूर धुम्मइ तारायण ससिसूर ॥२७॥ पहं तुहि जापिच्चरइ भूयणि पउमिणि समरइ तनी सवणि । भक्खइ भुजु अटारसमेउ भुजिजइ पिज्जइ वरपेउ ॥२८॥ पहिरिज्जइ कप्पडे वरसार कंचण कुंडल मोतीहार । सम्माणिज्जइ वर तंबोल सम्मइ बंदीयण हलबोल ॥२९॥ चंदणमयणाहिघुसिणघणसार किज्जइ सुरहि विलेवणसार । घरि बज्झइ तुरियहं थट्टि दीसह मयभंभलदोघट्टि ॥३०॥ रहवरकरिजंगमसुर जाण उलग्गइ...इक्कपहाण । अणुसलिसई चामरक्त भाणिज्जइ माणिणि अणुरत्त ॥३१॥ ससहरकल बारससरजुत्त थायरजंगमविसहरतत्त । हंसहारहरससहरकंति नाम गहणिं तुह दयफल हुंति ॥३२॥ वंझनारि तुह पय झायंति सुरकुमरोवम पुत्त लहंति । निंदू नंदण जणइ चिराउ दुहव पावर वल्लह राज ॥३३॥ चिंतियफल चिंतामणि मंति तुज्झ पसायिं फलइ नियंतु । तुल्ल अणुग्गह नर पिक्खेवि सिज्झइ सोलह विजापवि ॥३४॥ रूपकंतिसोहग्गनिहाण निव पूइयपय अमिलियमाण । कविवाईसर हुंति ते धण्ण जाहं पउमि ! तु होहि पसण्ण ॥३५॥ तुह गुण अंत न केणवि मुणिय तहवि तुज्झ मई गुणलव थुणिय । आण जु पालइ जिणसिंघ सूरि तार्य संघमणवंछियपूरि ॥३६॥ पउमावई चउपई पढंत होइ पुरिस तिहुयणसिरिकंत । रम्म भणइ नियजसकप्पूरि सूरदीय भरण जिणप्पहसूरि ॥३७॥
For Private And Personal Use Only