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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ७४ ॥ असंख्यातवै भाग हैं। काययोगीनिविर्षे मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । तीनूं योगवाले सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई तौ पल्यके असंख्यातवै भागपरिमाण हैं । प्रमत्तसंयत आदि सयोगकेवलीताई संख्यात हैं । अयोगेकवली गुणस्थानवत् संख्या ।। . वेदके अनुवादकरि स्त्रीवेद पुरुषवेदवाले मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं । नपुंसकवेदी मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । बहुरि स्त्रीवेदी नपुंसकवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है । प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई संख्यात हैं । पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है ।। प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई गुणस्थानवत् संख्या है । वेदरहित अनिवृत्तिवादरसांपराय आदि अयोगकेवलीताई सामान्योक्त कहिये गुणस्थानवत् संख्या है ।। कषायके अनुवादकरि क्रोधमानमायाविर्षे मिथ्यादृष्टि आदि संयतासंयतताई गुणस्थानवत् संख्या है । प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिवादरसांपरायताई संख्यात हैं । लोभकषायवालेका पहलै कह्या सोही अनुक्रम है । विशेष यह, जो, सूक्ष्मसांपरायसंयतका गुणस्थानवत् संख्या है । कषायरहित उपशांतकषाय आदि अयोगकेवलीताई गुणस्थानवत् संख्या है ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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