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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान ७३ ।। असंख्यातवै भाग हैं । सो असंख्यातवा भाग असंख्यातकोडि योजनके प्रदेशमात्र जाननां । सासादन सम्यग्दृष्टि आदि संयतासंयतताई संख्यात हैं । ते सासादनविर्षे बावन कोडि हैं । मिश्रवि | एकसो च्यारि कोडि हैं । असंयत सातसैं कोडि हैं । संयतासंयत तेरह कोडि हैं । बहुरि प्रमत्तसंयत आदिकी संख्या सामान्योक्त कहिये गुणस्थाननिमें कही सो संख्या जाननी ॥ देवगतिविर्षे देव मिथ्यादृष्टि असंख्यात श्रेणीपरिमाण हैं । सो प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि पल्योपमके असंख्यातवै भागपरिमाण हैं | इंद्रियके अनुवादकरि एकेंद्रिय मिथ्यादृष्टि अनंतानंत हैं । दींद्रिय वींद्रिय चतुरिंद्रिय असंख्यात श्रेणीपरिमाण हैं । सो प्रतरके असंख्यातवै भाग हैं । पंचेंद्रियवि मिथ्यादृष्टि असंख्यात श्रेणीपरिमाण हैं । सो प्रतरकै असंख्यातवै भाग हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंत गुणस्थानवत् संख्या जाननी ।। कायके अनुवादकरि पृथिवीकायिक अप्कायिक तेजस्कायिक वायुकायिक असंख्यातलोक परिमाण हैं । वनस्पतिकायिक अनंतानंत हैं । बसकायिककी संख्या पंचेंद्रियवत् जाननी ॥ योगका अनुवादकरि मनोयोगी वयोगी मिथ्यादृष्टि असंख्यातश्रेणीपरिमाण हैं । ते प्रतरकै extertabaccidslipixertilipreritsaptertaineeritsaroriteixe For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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