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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥ पान ७७६ ॥ ताके अनन्तरही ज्ञानदर्शन है स्वभाव जाका ऐसा केवल नामा आत्माका पर्याय अचिंत्य है विभूतिका विशेष जामें ऐसी अवस्थाकू पावै है । ऐसें इहां तरेसठि प्रकृतिनिका सत्तामेंसू नाश करि केवलज्ञान उपजावै है । घातिकर्मकी । १७ । आयुकर्मकी । ३ । नामकर्मकी । १३ ॥ आगें शिष्य कहै है, जो, मोक्ष कैसै हेतुतें होय है अर ताका लक्षण कहा है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥ याका अर्थ-- बंधका कारण जे मिथ्यात्व आदि तिनका अभाव अर निर्जरा इन दोऊनितें समस्त कर्मका अत्यंत अभाव होय, सो मोक्ष है। तहां मिथ्यादर्शनआदि जे बंधके कारण तिनका अभावतें तौ नवीन कर्मका बंध नाहीं होय है । बहुरि पूर्व कहे जे निर्जराके कारण तिनकू निकट होतें पूर्वबंध जे कर्म तिनका अभाव होय । ऐसे ए दोऊ कारण होय तब भव कहिये पर्यायकी स्थितिका कारण जो आयुकर्म तिसकी स्थितिके समान स्थिति कीये है अवशेष | कर्मकी अवस्था जानें ऐसा केवली भगवान् ताकै एककाल समस्त अवशेष कर्मका विप्रमोक्ष कहिये अत्यंत अभाव सो मोक्ष है । ऐसी प्रतीतिरूप करना । इहां कहै है, जो, कर्मका अभाव दोय प्रकार है, यत्नसाध्य अयत्नसाध्य । तहां चरमशरीरी आत्माकै नरक तिर्यंच देव इन तीनि आयुका तौबंध AttpreritsabsertebratSaatxesisaxemberitain. For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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